प्रेम दिवानी मीरा
1.
चौदह अन्ठयानू जनम, कुड़की-पाली ग्राम ।
पन्द्रह सैंतालिस हुई , पूरी जीवन शाम ।
भोजराज से ब्याह पर , पाँच वर्ष का साथ —
सती नहीं बनना चहा , कृष्ण भक्ति आयाम ।
2.
कृष्ण भक्ति की थी लगन , भजन संग गुणगान ।
इसी अनूठे प्रेम पर , मीरा थीं कुर्बान ।
लोक लाज को भूलकर , हृदय समर्पण राग –
मन से पति तक मानकर , रखी कृष्ण की आन ।
3.
श्याम हृदय मीरा बसीं , मीरा मन में श्याम ।
लोग बावरी ही कहें , हुआ नहीं मन वाम ।
यही अलौकिक प्रेम है , मिले न और मिसाल —
भक्त और भगवान का , ये अद्भुत आयाम ।
4.
‘नरसी जी का मायरा ‘ ,और ‘राग गोविंद ‘ ।
काव्य ‘राग सोरठ ‘ लिखा , भईं कृष्ण मानिंद।
डूबीं निर्गुण भक्ति में , किया जहर तक पान —
भजा गिरधर गोपाल को , मिला भक्ति मकरिन्द ।
5.
प्रेम कृष्ण मीरा बना , ये समर्पण मिसाल ।
निराकार से प्रेम ये , अद्भुत और विशाल ।
कृष्ण भक्ति का काव्य रच , मूर्ति सम्मुख नृत्य-
इसी कृष्ण की भक्ति से , ऊँच हो गया भाल ।
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प्रबोध मिश्र ‘ हितैषी ‘
बड़वानी (म. प्र . ) 451 551
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