प्रेम को स्मृतियां
पुरुष के लिए भी आसान तो नहीं होता अलगाव के दर्द से बाहर आ पाना…!!
मगर फिर भी,वक्त गुजरने के साथ,धुंधली पड़ जाती हैं ,मुस्कुराती सुबहें
खिलखिलाती दोपहरें !!ठंडी पड़ जाती है सांसों की गर्मी,बाहों के कसाव !
फिर एक दिन फेंक ही देता है वह हंसती आंखों से दिए सब उपहार..!
व्हाइट शर्ट, परफ्यूम, बेल्ट, पर्स..!!फाड़ ही देता है ,देर सबेर
होटल, रेस्त्रां के बिल,जिनमें,दर्ज थी.. सब तारीखें, वक़्त, जगह!
साथ खाए बर्गर, कुकीज़, कॉफी !! बहुत दिन उसकी आंखों से नही जाते
उमंगित हृदयों के नृत्य,निर्निमेष आँखों के दिए !!
मगर एक दिन ऐसा भी आता है कि जब
किसी और की कहानी लगने लगती है अपनी ही दास्तां
तुम्हारी ड्रेसेस, चाल, खनक, हंसी सब भूलने लगता है वो!
मगर,उसकी हृदय-गुफा में,अमिट अंकित रहती हैं
वह स्मृतियाँ कि जब तुमने,नाराज़गी के बाद भी..
टिफिन में पैक कर के रख दिए थे.. शाम के लिए सैंडविच
और रात के लिए आलू पराठे,अचार..”खा लेना, भूख लगेगी!”
कि जब,बिन बताए तय कर दिए थे उसके सब कपड़े
नर्म हाथों से हर लिया था माथे का ताप
हर स्मृति से बाहर निकल आता है
पुरुष मगर,
कभी बाहर नहीं निकल पाता
प्रेम के मातृत्व से…