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26 Oct 2022 · 5 min read

प्रेम के रिश्ते

“तुम्हारे घर के आसपास हर बिरादरी के लोग रहते हैं, ऐसा करो ये घर बेच दो भाभी, ग्राहक वगैरह मैं बता दूंगा, सेफ जगह पर चलकर रहो” कविता के देवर शिखर ने कविता से कहा …
कविता सहसा चौक पड़ी, उसकी ऑंखों के सामने उसके पड़ोसियों का चेहरा तैरने लगा, कैसे कोरोना काल में रूबीना आपा (जो घर के बगल में ही रहती थीं) दिन-रात उसका ख्याल रखती थीं। सुखविंदर दीदी (घर के पीछे ही उनका घर था) ने तो घर आना ही नहीं छोड़ा। कुण्डू दादा (जिन्होंने पहले-पहल अपने घर में रहने की जगह दी, तत्पश्चात घर खरीदने की प्रेरणा भी दी) तो देवता बनकर खड़े हो गये थे…कविता के पति संवेद का हाथ पकड़कर कहते थे “हिम्मत रख बेटा, ऊपरवाला सब ठीक करेगा…” उसको याद आया कि कैसे शिखर ने झगड़ा करके उन चारों को घर से निकल जाने को कहा था …और अपने लखनऊ की यादगार टीले वाली मस्जिद के पास बैठकर वो दोनों पति-पत्नी रोने लगे थे कि अचानक कुण्डू दादा आ गये थे.. कुछ नहीं पूछा था उन्होने, बस कहा था …”मुझे अपना बाप समझो बेटा” और संवेद! वो उनके गले लगकर रो पड़ा था। मौन ने मौन का सारा दर्द समझ लिया था। पूरे दस साल से कविता इस मोहल्ले में रह रही है, किसी ने उसके पूरे परिवार से अतीत का कभी ज़िक्र नहीं किया, सब बहुत भले लोग हैं..पता ही नहीं चलने देते हैं कि होली है या ईद, नव दुर्गा है या ईस्टर है, हर समय सब साथ रहते। कुण्डू दादा का छोटा सा परिवार उसको कब अपना लगने लगा था, वो जान ही नहीं पायी थी। अपने देवर-देवरानी को और उनके दिये असीम कष्टों को वो जैसे भूल हो गई थी…
“किस सोच मेँ उलझ गईं भाभी ….ये समय शोक मनाने का नहीं है, निर्णय लेने का है। दादा को गुजरे तीन दिन हो गये हैं, जल्दी बताइये …कल सुबह मुझे देहरादून के लिए निकलना है, वहाँ आपकी देवरानी अकेली है..उससे पहले ही मैं एजेंट से बात कर लेता हूं” शिखर ने ज़ोर देते हुए कहा …
“शिखर भैया, मेघना की इण्टर की फीस नहीं जमा है, काजल और नुपूर की दसवीं की फीस नहीं जमा, पूंजी सब निकल गई, मुझे अभी इन बच्चों की पढ़ाई की चिंता है …यदि आप पहले फीस की व्यवस्था कर देते तो …” कहते- कहते कविता की ऑंखे भर आईं…
“भाभी अभी थोड़ी तंगी चल रही है। आपको तो पता है, डीपीएस की फीस बहुत है, कुलीन का तीसरा क्लास है, अगले वर्ष मैं सारी व्यवस्था कर दूंगा, मुझे थोड़ा समय दीजिए, इस बार काफी खर्च हो गया …” कहते कहते शिखर की नजरें बेटियों पर टिक गई …”यूं भी.. ये लोग एक साल बाद परीक्षा देंगी तो अच्छे नंबर भी आयेंगे | इन सब को इस साल घर पर रहकर संभलने दीजिए” कहकर शिखर कुटिलता से मुस्कराया…कविता अपमान से भर गई!
कविता को याद आया कि उसके ससुराल में संवेद और शिखर यही दो लोग थे। उसकी शादी वाले साल ही तो शिखर जर्मनी से पढ़कर लौटा था, शिखर संवेद से उम्र में करीब 15 साल छोटा था। संवेद ने लखनऊ में ही रहकर पढ़ाई करी थी। संवेद ने ही शिखर की शादी करवाई थी, पिताजी रिटायर हो चुके थे। प्राइवेट नौकरी में थे, इसलिए ज्यादा फंड भी नहीं था। संवेद ने अपने माँ-बाप की सेवा की, उनकी मृत्यु पर सब सॅंभाला, पर धीरे-धीरे दिल के रिश्तों में दिमाग ने पूरी जगह बना ली …और आज! उसने एक लंबी सांस ली और शिखर से कहा …”आप अपना जीवन देखिये भैया, यहाँ सब हो जायेगा ।” आगे वो कुछ कहती, उससे पहले ही रूबीना आपा घर आ गईं और बिना किसी भूमिका के बच्चों से बोलीं …”चलो, कल से स्कूल की तैयारी करो, एक महीने बाद फाइनल इम्तहान हैं तुम सबके …”
“अरे आपा.. परीक्षा अगले वर्ष दे देंगी ये लोग” कहकर कविता ने जैसे अपने समय की विषमता को स्वीकार कर लिया …. उसको याद आया कि इस घर को खरीदने में उसके जेवर भी लग गए थे। प्राइवेट नौकरी थी संवेद की, शिखर पर संवेद को पूरा भरोसा था, तीसरी बेटी के जन्म पर संवेद ने शिखर से गाँव की संपत्ति बेचने की बात की तो पता चला शिखर पहले ही उसको बेच चुका था। तब उसको समझ में आया कि इंसान का सीधा होना कितना गलत होता है.. और यदि पैसे की कमी हो तो अपना खून भी सफ़ेद हो जाता है, लेकिन समय ऐसे बदलेगा ये तो कविता सोच ही नहीं पायी थी …वो भयानक दिन याद करके उसका पूरा शरीर काँपने लगा ….वो पांचों लोग हाई फीवर की चपेट में आ गए थे…सब अपने –अपने बिस्तर पर पड़े कराह रहे थे …अथाह बदन दर्द …कमजोरी …तब तक कुण्डू दादा डंडा बजाते हुए घर में घुसे थे..
“अरे !” कहते हुए कुण्डू दादा ने जैसे ही सबको बिस्तर पर लेटा देखा, तुरंत अपने डाक्टर बेटे को फोन किया। चूंकि तब तक कोरोना फैलना भी शुरू हो गया था, इसलिए दादा थोड़ा चिंतित थे, बेटे ने जो जो दवाइंया बताईं, सब लिखा और लौट गए | घंटे भर के भीतर ही दवाएं आ गयी…डेंजिल भैया (पड़ोसी होने के साथ-साथ संवेद के अच्छे दोस्त भी थे) ने पूरे दस दिन तक सबकी सेवा की….खाना ….दवा…घर का झाड़ू पोछा … संवेद कहता रहा कि “हम सबको कोरोना हो गया होगा, तुमको न हो जाये”, पर उन्होने तो जैसे कसम खा ली थी, सबको ठीक करके ही माने । पर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था …किसे पता था कि संवेद का ऐसे एक्सीडेंट हो जाएगा और …
यकायक उसको ज़ोर से घबराहट हुई, वो फूट-फूट कर रो पड़ी।
“अरे ना मेरी बच्ची” कहकर रूबीना आपा ने उसे चिपका लिया और बोलीं…
“तीनों की फीस मैं जमा करके आई हूॅं”। बच्चों का एक-एक दिन बहुत कीमती है, तीनों टाॅपर बच्चियाँ हैं, उन पर ध्यान दो ….और हाँ…बगल वाले घन्नू का रिक्शा भी बन गया है, ये लोग उसी से चली जाएंगी” कहकर रूबीना आपा ने उन बच्चों को भी चिपका लिया ….तीनों बच्चे चीख-चीख कर रोने लगे …”आपा हमें कहीं नहीं जाना है, हमें यहीं रहना है…”
तब तक कुण्डू दादा खाना लेकर भीतर आ गए …खाने की खुशबू से घर भर गया था…कटहल की सब्जी, भरवां करेला, वेज बिरयानी …बच्चे सारा दुख भूलकर खाने की ओर देखने लगे …
“तुम लोग सुबह से भूखे हो , चलो अब खाना खाओ ….और हाँ कविता बिटिया, कल मोड़ वाले घर से परमजीत के तीनों बच्चे आयेंगे…उनको तुम थोड़ा पढ़ा देना ….हैं तो कक्षा एक और दो में, पर वो तो दुकान चला जाता है, घर में कोई ध्यान नहीं दे पा रहा है, उचित ट्यूशन फीस भी देगा वो ” कहकर दादा बाहर निकल गए । “ज़िदगी की ना टूटे लड़ी…” गाते हुए सुखविंदर दीदी घर में घुसीं और कंघा उठाकर कविता की चोटी बनाने लगीं….घर का माहौल एकदम से बदल गया, तब तक शिखर बोल पड़ा…
“मैं चलता हूँ भाभी” …और बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए बाहर निकल गया …
कविता सुखविंदर दीदी की गोद में सिर छुपाकर रोने लगी … “चमक-धमक से परे सादगी की बात करें
हाथों में हाथ डाल, दोस्ती की बात करें” कहीं दूर गजल की पंक्तिया हवा में गूंज रही थी।
बच्चे खाना लगा कर उसके पास आ गए और उससे खाने की जिद करने लगे …बड़ी बिटिया ने उसके कान में कहा “माँ सब ठीक होगा, हम यहीं रहेंगे …आप चिंता न करना ….”
उसकी आंखों मेँ दृढ़ निश्चय की चमक देख कविता ने राहत की साँस ली और सब लोग खाना खाने लगे।

समाप्त

स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ

Language: Hindi
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