प्रेम की महत्ता
प्रेम की बेल दूर रहने से फलती है और पास रहने से मुरझा जाती है।
प्रेम खुदा कि सच्ची इबादत है।
दुनिया में सबसे बड़ा अपराध है किसी का प्यार भरा दिल तोड़ना।
प्रेम ईश्वर का ही प्रतिरूप है।
प्रेम अंधा होता है क्योंकि प्रेमी अपने प्रेम-पात्र कि छोटी -बड़ी सभी भूलों को अनदेखा कर देते हैं।
प्रेम संसार कि बड़ी से बड़ी दौलत से भी ज़यदा क़ीमती है।
प्रेम का मुख्य द्वार आँखें है ना कि जुबां।
प्रेम में समर्पण और निस्वार्थ भाव शामिल होता है तभी प्रेम महान होता है।
प्रेम तुच्छ से तुच्छ वस्तु /मनुष्य को मूल्यवान बना देता है।
प्रेम रूह में निहित होता है भौतिकता में नहीं।
निस्वार्थ प्रेम ही प्रभु का निवास-स्थान है
प्रेम जीवन के संघर्षों से मुक्ति का मार्ग बनाता है।
प्रेम प्रेरणा का उदगम -स्त्रोत है।
सच्चा प्रेम मात्र आकर्षण ना होकर ठोस हक़ीक़त है।
प्रेम शक्ति का पुंज है।
सच्चा प्रेम जीवन में केवल ३ लोगों से ही मिलता है माता -पिता ,गुरु व् भगवान्।
प्रेम अजर-अमर ,अविनाशी है। इंसान मर जाते है मगर प्यार नहीं मरता।
प्रेम आंतरिक सोंदर्य को महत्ता देता है बाह्य सौदर्य को नहीं।
जिस ह्रदय में यदि प्रेम अपना स्थान बना ले वहाँ प्रेम कि अन्य सखिओ (दया,करुणा, सहयोग, नम्रता , सहनशीलता, संतोष, पवित्रता , आदि सवतः ही पदार्पण हो जाता है।
प्रेम बुरे से बुरे व्यक्ति को भी महान बना सकता है।
प्रेम पूर्णतः स्वायत व् सवतंत्र होता है।
सच्चे प्रेम के समक्ष ईश्वर को भी झुकना पड़ता है।
प्रेम सर्व-व्यापी व् सर्वरूप है।
प्रेम में शुधता व् शुभ्रता आवश्यक है।
प्रेम महान होता है।