प्रेम की परिभाषा
बड़ी खुबसूरती से वह बातों को बनाना जानती थीं
वो कोयल ना थी फिर भी रिझाना जानती थी।।
अपने हौसलों से गगन को छूना जानती थीं
वो पतंग ना थीं फिर भी उड़ना खूब जानती थीं।।
अपनी बातों को सब से लोहा मनवाना जानती थीं
वो किसी से डरती ना थी, फिर भी प्यार से झूकना जानती थीं।।
अपनी चतुराई से वह रिश्ते को संभालना जानती थीं
वो ज्यादा पढ़ी-लिखी ना थीं साहब, फिर भी रिश्तों के एहमियत को जानतीं थी।।
अपनों के खुशी के लिए दुनिया से लड़ना और खुद मिट जाना जानती थीं
वो कृष्ण की राधा ना थीं फिर भी प्रेम की परिभाषा जानती थीं ।।
नीतू साह
हुसेना बंगरा, सीवान-बिहार