प्रेम की ज्योत
मेरी मंजिल में ; तेरी ही, रहनुमाई है!
मेरी मंजिल में ; तेरी ही, रहनुमाई है!
अंतरमन में गूँज रही,तेरी ही शहनाई है
व्यथित मन जब भटक रहा था इधर उधर
सही गलत का फर्क करना तूने ही समझाई है!!
जानती नहीं थी की ये सफ़र कहाँ लेकर जाएगी
तुमने ही मुझे खुद को, जिंदगी से मिलवाई है
विचलित था ये हृदय मेरा,अंधेरों में खोई थी
करके रौशनी दिल में प्रेम की ज्योत जलवाई है!!
प्यारे प्यारे स्वप्न सजाये आँखों में मेरे तुमने
पूरा करने कि इसमें मुझमें अलख जगवाई है!!
अधूरे-अधूरे से ख्वाब थे मेरे,पूरा इसे तुमने किया
सफ़र में किया बेसहारा, ये कैसी तेरी बेवफ़ाई है
दूर होकर भी पास और पास होकर भी दूर हो
ये कैसा तेरा प्रेम या फिर ये कैसी रुसवाई है!!
ममता रानी
दुमका,झारखंड