प्रेम का आधार शाश्वत
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#विधा? #गीत
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रचना
संबंध का आधार शाश्वत, प्रेम जीवन सार है।
हेतु नहीं एक याम का यह, प्रेम भव आधार है।।
जब प्रेम पलता चहुँदिशा में, स्वार्थ रहता दूर है।
जो स्वार्थ साधक प्रेम करता, द्वेष उर भरपूर है।।
मिथ्या नहीं यह बात सच, गर हो सके तो मानिए।
है प्रेम मीरा, प्रेम राधा, देखिये अरु जानिए।।
प्रतिरूप यह परमात्मा का, तीज हर त्यौहार है।
संबंध का आधार शाश्वत, प्रेम जीवन सार है।
जो प्रेम पलता है हृदय तब, जग लगे रंगीन है।
बिन प्रेम के दुनिया अजब सी, लख रही संगीन है।।
इस प्रेम के वश हो विदुर घर, श्याम खाये साक थे।
भर प्रेम उर लंका को हनुमत, कर गये तब खाक थे।।
राधा सिया हनुमत व तुलसी, प्रेम का विस्तार हैं।
संबंध का आधार शाश्वत, प्रेम जीवन सार है।।
शबरी के जूठे बेर में भी, प्रेम दिखता था जिन्हें।
तब प्रेमवश हो बेर खाये, राम कहते हैं उन्हें।।
यह प्रेम देकर के हमें सब, कुछ नहीं है मांगता।
मर्याद में रहता सदा सीमा नहीं है लांघता।।
शबरी सुदामा सूर का यह, प्रेम तारणहार है।
संबंध का आधार शाश्वत, प्रेम जीवन सार है।।
पूर्णतः स्वरचित , स्वप्रमाणित
पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार