प्रेम कहाँ है?
कैसा होता है प्रेम?
क्यों होता है प्रेम,
कहाँ होता है प्रेम??
नहीं हैं मेरे पास इन प्रश्नों के उत्तर।
इन प्रश्नों के उत्तर
खोजने के लिए तो
जाना पड़ेगा बीहड़ों में,
गाँवों में, पहाड़ों में
जहाँ खिलखिलाती है प्रकृति
फूलों में
बहती हैं नदियाँ
कलकल ध्वनि के साथ
रम्भाती हैं आज भी
सुबह-शाम गैया
लहलहाती हैं
फसलें
और रोटियों से उठती है
सोंधी महक।
भला प्रेम को मैं
किस तरह से पहचान लूँ?
यहाँ वो सब
कहाँ है
कैसे रहेगा यहाँ प्रेम?
जहाँ शोर है वाहनों का
दुर्गंध प्रदूषण की और आपाधापी
कुर्सियों की
नहीं! यहाँ जब प्रेम रह ही नहीं सकता
फिर उसे कोई कैसे पहचानेगा?