प्रेम और विश्वास
प्रेम और विश्वास
सच्चा प्रेम अटल रहता है।
कपट रहित हो सब कहता है।।
इक सिद्धांत हमेशा पावन।
तपते मन का शीतल सावन।।
अंतस अति कोमल निर्मल है।
हृदय विशाल महान धवल है।।
यही प्रेम विश्वास दिलाये।
सहज भरोसा उर में लाये।।
आदि अंत प्रिय मध्य एक है।
मृदुल मधुर शुभ दिव्य नेक है।।
कभी नहीं मन में कुटिलाई।
चाहे सात्विक स्नेह भलाई।।
द्वेष कुरंग कुचाल नहीं है।
स्वच्छ पीत हृद हाल सही है।।
कौन नहीं विश्वास करेगा?
स्वयं प्रेम नित पास रहेगा।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।