प्रेम और विश्वास की पराकाष्ठा
जीवन में एक पड़ाव ऐसा भी आता है जब आपको लगता है कि कोई समुद्री कल्लोल जैसे आपके समस्त स्वप्नों से लदे नाव को बीच मझधार में डुबोना चाहता है ;और समस्त परिस्थियाँ प्रतिकूल होकर उस विकट काल के ही पाले में खेल रही है।ऐसे विकटतम पहर में आपके आराध्य,परिजन और बंधुजन ही साधना के साधन बन जाते हैं।उन प्रतिकूल वेदनामय क्षण को पुनः जीने की इच्छा आपका उनके प्रति शिशु-सम,निःस्वार्थ व निर्भीक विश्वास का परिचय देती है।