प्रेम और बुद्धि
प्रेम और बुद्धि
प्रेम तो ईश है, बुद्धि अवतार है,
बुद्धि के फेर में, सारा संसार है।
मन वो संदूक है, प्रेम जिसमें धरा,
मन भरा है तो सारा,जगत ही भरा।
क्या कभी बुद्धि बिन रण लड़ा जा सका?
क्या कभी बुद्धि से मन पढ़ा जा सका?
श्याम प्यारे को उद्धव लिवाने चले।
बुद्धि का संग ले के बुलाने चले।
ग्वालिनों को मगर देख कर रह गए।
आज उद्धव कहां से कहां बह गए।
झूठ कोई न उनसे गढ़ा जा सका ।
क्या कभी बुद्धि से मन पढ़ा जा सका।
इंदु पाराशर