प्रेम एक आराधना है…..
(एक छोटा सा लेख प्रेम के नाम पर)
यूंही नहीं बदनाम किया करो प्रेम की परिभाषा को प्रेम मतलब आत्मा का आत्मा से मिलन, आशाओं का आशाओं से मिलन, सपनों का सपनों से मिलन, एक दुनिया का दूसरे दुनिया से मिलन।
प्रेम कोई खेल नहीं जो कि अभी ज्यादातर इंसान खेल रहे है प्रेम सिर्फ जिस्मों से लगाव नहीं है।प्रेम तो अन्नय भाव से समर्पित होकर किया जाता है।
जब तक प्रेम निस्वार्थ ना हो तब तक उसे प्रेम कहना उचित नहीं होगा , स्वार्थी प्रेम सिर्फ जरूरत के अनुसार प्रकट होता है और जरूरत खत्म होने पर स्वत ही अंत हो जाता है।
और अभी ज्यादातर प्रेम का मुख्य उद्देश्य स्वार्थ ही है।
#लेकिन मै सब क्षेत्र के लिए ये नहीं बोल रहा हूं।#
धन्यवाद
:- (बिमल)