प्रेम आस्था
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक // अरुण अतृप्त
प्रेम आस्था
प्रेम एक ऐसा विषय है जिसकी गहराई से तारतम्य बिठाना इतना सरल है की मुझसा एक अबोध बालक भी समझ जाए , और दूसरी तरफ इसी प्रेम को सिर्फ देह आकर्षण का भाव समझ वासनात्मक ब्लेक होल में धकेल दिया जाए जिसका कोई आदि न अंत। बात सिर्फ स्वीकार कर के आत्मसात करने तक ही सीमित है। अन्यथा सिर्फ देह तक ही चिन्हित है। प्रेम की व्याख्या ही मेरी इस कथा का सार है भाव है आधार है।
आज आपको एक सत्य कथा से रू – ब – रू करा रहा हूँ जो की २०१३ के एक प्राकृतिक आपदा से जुडी हुई है और आप सब उस से भली भांति परिचित भी हो , उस घटना ने बाबा भोले नाथ तक को हिला दिया था सामान्य प्राणी की बात छोड़ ही दो , और उन्होंने अपनी आस्था पर आंच नहीं आने दी जब की उस रात मौत का ऐसा तांडव हुआ था की सब कुछ तहस नहस हो गया था।
बाबा केदारनाथ पांडवों के इष्ट देव उनके अरण्यबास के दौरान , उन्ही के द्वारा स्थापित पूज्य इष्ट देव बाबा भोलेनाथ का केदार धाम में स्थापित मंदिर उस रात उस भीषण घटना का एक मात्र साक्षात् दर्शक उस क्षेत्र में बचा था जोकि स्वयं भी बह जाता अगर बाबा भोलेनाथ द्वारा उस प्रस्तर खंड को ठीक मंदिर के पृष्ठ प्राचीर से कुछ कदम दूर वे स्थापित न किये होते जिस प्रस्तर ने ढाल बन कर मंदिर की रक्षा की। सभी जानते हैं।
मेरी ये कहानी उसी भयानक रात की कहानी है जिस रात बदल फटा था केदार क्षेत्र में और कुछ ही समय में असीमित जान और माल को मटिया मेट कर के ही शांत हुआ था
रमेश और रागिनी की शादी को १० साल हो गए थे, रमेश का वेतन सिर्फ गुज़ारे लायक ही था। रागिनी जब से रमेश के घर आयी थी उसकी बाबा केदारनाथ के दरबार में माथा झुकाने की बहुत इच्छा थी लेकिन पैसे के आभाव में ये धर्म का काम भी रमेश की औकात से बाहर था , इस साल जब बाबा केदारनाथ के मंदिर के द्वार खुले तो रागिनी ने हिम्मत करके अपने कंगन बेचने का मन बना लिया रमेश से इसकी अनुमति लेकर दोनों के पास अभी तक कोई संतान नहीं थी। बस यही भावना रागिनी को बाबा केदारनाथ की चौखट की ओर खींचती थी उसका दृढ़ विश्वास उस को बुलाता था।
रमेश ने उसकी बात मानकर सब इंतज़ाम पूरे किये और बाबा के नगर पहुँच कर एक लॉज में उस रात पहुँच गए अगली सुबह दर्शन का समय भी सुनिश्चित हो गया था।
रमेश और रागिनी ने अभी अपना रात का भोजन किया था की दर्शन के लिए कुछ पूजा सामग्री लेने वो बाजार गया था , कि इतने में जैसे तूफ़ान बबंडर आ गया हो पानी का ऐसा रेला आया की सब कुछ बहा ले गया। जो बाजार सजा हुआ था अभी उसकी आँखों के सामने सब बह गया उसको भी एक लहर ने उठा के पहाड़ी के ऊपर फेंक दिया सब तरफ अँधेरा घोर घुप्प अँधेरा. कुछ दिखाई नहीं दे रहा था बस चीख पुकार दर्द कराहट पीड़ा पूरी की पूरी बस्ती जो सामने बसी थी साफ़, रमेश एकलौते पेड़ से चिपका गुटर गुटर अँधेरे में देखने की कोशिश में लगा था। लेकिन ऐसा अँधा तूफ़ान जो महज २० मिनट में सब कुछ बहा ले गया कुछ देखने दे तब ना। उसकी बुद्धि कुंठित हो गई। जैसे ही पानी का रेला कम हुआ बादलों गड़गड़ाहट बिजली की तड़क कम हुई। उसने अपने आप को टटोला। शुक्र है बाबा का सब हाँथ पैर सलामत थे.
नीचे उतरने की कोशिश की तो तेज़ पानी का बहाब डर के फिर वापिस पेड़ पर।
लोगों के चीख चिल्लाहट अपने अपनों की तलाश की आवाजें टोर्च की रौशनी देख उसे एकदम रागिनी का ख्याल आया पागल सा हो वो जैसे तैसे अंदाज से लॉज की तरफ भागा। देखा तो मंदिर के आसपास १ किलोमीटर के दायरे में ऐसी सफाई हुई के जैसे सदियों पहले कभी रही होगी घर , बाजार , होटल लॉज सब साफ़। बोखला गया। ऐसी स्थिति में किसी को ढूंढना सोच भी नहीं सकते थे।
इतने में बीएसऍफ़ के जवानो ने हेलीकॉप्टर से रस्सी से लटक २ कर आना शुरू किया सब अपनी अक्ल के अनुसार राहत कार्य जीवन की खोज व् सुरक्षित स्थान की तलाश में लगे।
माइक से एक घोषणा बार २ की जा रही थी सामने की पहाड़ी से – जितने लोग भी इस सूचना को सुन रहे हैं तुरंत बीएसऍफ़ केम्प १ में रिपोर्ट करें।
रमेश भागा गिरा फिर भगा फिर गिरा आखिर केम्प पहुँच कर उसने अपना पंजीकरण कराया मोब न लिखा घर का पता व् साथ कौन २ था सब ब्यौरा दिया उसकी एक फोटो मोबाइल से अफसर ने ली फिर उसको एक आईकार्ड दिया गया। जिसमे उसकी व् रागिनी की फोटो लगी थी। इसको हिदायत दी गई के अगले ४ दिन वो कहीं नहीं जाएगा। दिन में ६ बार केम्प में रिपोर्ट करेगा अपना डेली मेडिकल चेकअप कराएगा। कोई भी जानकारी होगी सब बताएगा। और टीम की सहायता करेगा।
उसके साथ लगभग २५ लोग अपना पंजीकरण करा कर टीम के साथ सहायता कार्यों में लगे हुए थे। रमेश हर जगह जा जा कर रागिनी की फोटो दिखा दिखा के उसका पता करने की कोशिश में था लेकिन अगले १० दिन तक भी उसका कोई सुराग नहीं मिला – केम्प टीम ने बोर्ड पर उसका नाम – लापता लोगों की लिस्ट में लिखा था।
अब तक रमेश घर पर सभी को ये जानकारी दे चुका था। घर से कई लोगों ने मदद के लिए आना चाहा मगर केम्प लीडर ने सबको आर्डर देकर साफ़ साफ़ मना क्र दिया था। बिमारी व् इन्फेक्शन फैल रही थी अब तक २०० शव मिल चुके थे व् १५०० से ज्यादा घायल लोगों को उपचार के लिए ले जाया जा चुका था , लगभग ५६२ लोग साधारण उपचार के बाद डिस्चार्ज किये जा चुके थे २० टेंट केम्प लगे थे जिसमे रहने भोजन चिकित्सा आदि का इंतजाम था अब जो जो लोग घर जाना चाहते थे उनको हेलीकॉप्टर से उनके पास के गंतव्य भेजा जा रहा था ,
रमेश को कई बार बोला गया लेकिन उसने रागिनी को अपने साथ लिए बिना जाने से साफ इंकार कर दिया। वो डेली ६ घंटे से १० घंटे सिर्फ इसी काम में लगा था व् साथ साथ सहायता कार्य भी कर रहा था।
एक महीना बीत चुका था अब रागिनी का नाम मृत / लापता श्रेणी में डाल दिया गया था प्रांत व् केंद्र सरकार की तरफ से मृत व्यक्ति के लिए घोषित सहायता रमेश ने साफ़ २ ठुकरा दी थी। वो मानने को तैयार ही नहीं था की वो अब इस दुनिया में नहीं।
अपनी शादी के दस साल में वो और रागिनी दो जिस्म एक जान जैसे हो गए थे ये रमेश की भगवान भोले नाथ पर व् अपने प्रेम पर आस्था ही थी जो उसको शक्ति दे रही थी।
२ महीने बीत गए , ६ महीने बीत गए लेकिन कोई रौशनी कोई सूचना रागिनी की नहीं आई अब बीएसऍफ़ का केम्प मंदिर के जीर्णोदार के कार्य में लगा था उसकी भविष्य की सुरक्षा का इंतज़ाम देखा जा रहा था रमेश चूंकि कंप्यूटर ग्राफिक्स का प्रशिक्षित इंजीनियर था सो वो बीएसऍफ़ टीम के साथ यही कार्य देख रहा था उनसे अब उसकी पक्की दोस्ती हो गई थी। शाम का ५ बजे का टाइम , बेस केम्प पर एक टीम जो केदार से ४ किलोमीटर दूर एक गाँव में लोगों को सहायता के लिए तैनात थी ३ व्यक्तियों [ दो महिला , एक पुरुष ] को लेकर आई।
रमेश उस समय अपने कंप्यूटर पर मंदिर की प्राचीर के विषय में एनिमेटेड डिसीजन डिजायन बनाने में लगा था उसके मोबाइल पे बीएसऍफ़ कमांडर का मैसेज आया प्लीज़ कम इम्मीडिएटली – कृपया बेस केम्प पर तुरंत आइये।
उसका दिल एक दम से एक पल के लिए धड़क उठा। वो भागा हड़बड़ी में सब छोड़ के। केम्प कमांडर के पास जाके क्या देखता है ? एक भिखारी जैसे पागल सी अवस्था में उसके सामने रागिनी थी। रोने लगा बौखलाहट में उसकी बुद्धि एक दम कुंठित हो गई गिर पड़ा उसके कदमो में फिर उठा फिर बाबा के मंदिर की तरफ देखा फिर लेट कर बाबा को प्रणाम किया फिर रागिनी का हाँथ हाँथ में लेकर उसको ठीक से पहचाना। लेकिन उसके चहरे पर कोई लक्षण नहीं थे वो निस्तेज भाव से सब देख सुन रही थी।
कमांडर ने उसको उठाया बोलै रमेश आज तक के जीवन में मैंने न देखा न सूना जो आज देख रहा हूँ * प्रेम आस्था का अनूठा संगम हम सब यही चर्चा करते थे तू पागल है ६ महीने में अब क्या कोई मिलेगा लेकिन तू जीत गया बाकई बाबा की असीम दया है तुझपे व् रागिनी पे।
उन्होंने पूरी रिपोर्ट बनाई रागिनी व् रमेश को स्पेशल हेलीकॉप्टर से बेस हॉस्पिटल भेजा १५ दिन के उपचार के बाद रागिनी की याद बापिस आ गई वो फिर से अपने पुराने सौंदर्य में बापिस आ चुकी थी और रमेश को तो समझो बाबा का सबसे बड़ा आसीस मिला था।