प्रीत के धागे नाजुक हैं
मैं हारा तुम जीते, क्या फर्क पड़ता है
छोटी-छोटी बातों से, रिश्ता टूट बिखरता है।
तुम जीत पर इतरा लो, मैं हार का जश्न मना लूंगा
तेरे अधरों से मैं भी, अपनी मुस्कान मिला लूंगा।
तकरार भले ही कर लेना, मुंह मोड़ कभी न लेना तुम
दौर भले ही कैसा हो, बंधन तोड़ कभी न लेना तुम।
प्रीत के धागे नाजुक हैं, मत जोर लगाना तुम इन पर
गर टूट गए इक बार जो ये, गांठ पड़ेगी फिर इन पर।
बीत समय जो जाता है यार, लौट नहीं वो आता है
जो समझ गया वो समझदार, ना समझे वो पछताता है।