प्रीति
प्रीति (शुभांगी छंद)
प्रीति परस्पर,घृणित शब्द क्या?, ऐसा प्यारे,मत सोचो।
माँ सा दिल हो,दिव्य गीत हो, मधुर भाव से,प्रिय सोचो।
वृत्ति शुद्ध हो,सत्य सत्व हो,मन हो भावुक,प्रीति अमर।
नहीं पराया,मान किसी को,सहज सरल ही,प्रीति अजर।
दिव्य सदन में,शुभ्र वदन में,शीतल मोहक,प्रीतिपुरी।
क्षीर सिन्धु में,विष्णु लोक में,लक्ष्मी जी की,हृदयपुरी।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।