* प्रीति का भाव *
** गीतिका **
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ध्यान से शब्द हर एक बोलो।
प्रीति का भाव रस खूब घोलो।
आंख नम हैं सभी कुछ बताती।
मत छुपाओ सभी राज खोलो।
है थका सा बदन आपका जब।
छांव में कुछ समय आज सो लो।
भावना प्यार की है सुकोमल।
तुम इसे अब रजत से न तोलो।
देखिए व्यर्थ मुरझा न जाए।
पुष्प को मालिका में पिरो लो।
हो सके तो करो बात मन की।
तुम उसी के स्वयं आज हो लो।
कार्य सेवा करो साथ मिलकर।
दाग़ गहरे सभी आज धो लो।
ले चुके प्यार की जब परीक्षा।
मन नहीं इस तरह अब टटोलो।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २८/०३/२०२४