प्रिय विरह – २
स्मृति प्रेम की नींद में, सुख क्रीड़ा का ध्यान।
सुख चपला की छटा, हर लेती है ज्ञान ।। १
अश्रु भीगते नित नयन, अविरल जल की धार।
मन व्याकुल तड़पे मिलन, प्रिय पथ रही निहार।।२
विरह अगन जलता बदन, जब प्रियतम हो दूर।
रक्त अश्रु रोते नयन,द्रवित हृदय मजबूर।।३
मन सागर के तीर पर, लोल लहर की घात।
कल-कल करती ध्वनि कहे, विस्मृत बीती बात I l४
बाँध दिए क्यों प्राण से, तुमने चिर अनजान।
विरह व्यथा बढ़ने लगी, विवश फूटते गान।। ५
गाती रहती चूड़ियाँ, पिया मिलन का राग।
चूड़ी ढीली हो गई, जली विरह की आग।६
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली