प्रिय मन
प्रिय मन (स्वर्णमुखी छंद/सानेट )
रेख कोमल मृदुल भाव की।
सदा नमन मन करता चलता।
बाहों में जगती को भरता।
इच्छा केवल दिव्य छांव की।
मधुमयता की इसे ललक है।
सावन का प्रिय मेघ लक्ष्य है।
पावन निर्मल भाव कथ्य है।
मधुर दृश्य की भव्य छलक है।
ऐ प्रिय मन!तुम गंधी बनना।
सबका प्रिय बन कर नित जीना।
सद्भावन की हाला पीना।
हो सुवास तुम सहज गमकना।
प्रिय मन अब प्रियतम बन जाये।
खुश कर जग में अब छा जाये।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।