प्रिये ! अबकी बार तुम्हारे संग, दीपावली मनाना चाहता हूँ….!
आँखों से आँखों में, प्रेम के दीप जलाना चाहता हूँ
प्रिये ! अबकी बार तुम्हारे संग, दीपावली मनाना चाहता हूँ
शशि, रवि पर्याप्त नहीं हैं, हृदय का तम हरने को
तेरे नैनों की ज्योति से, एक दीप दिल में जलाना चाहता हूँ
प्रिये ! अबकी बार तुम्हारे संग, दीपावली मनाना चाहता हूँ
इस क्षण के इंतजार में, आँखों ने वर्षों काजल पारे हैं
पल-पल पलकें तरसी हैं, हैं मौन फिर भी बरसी हैं
पलकों के किनारे पानी खारा, दे दो सम्बल अपना सारा
तू कल-कल सरिता सी, बाहें मेरी सागर सारा
प्रेम की इस धारा में दीपों की माला बहाना चाहता हूँ
प्रिये ! अबकी बार तुम्हारे संग, दीपावली मनाना चाहता हूँ
सूना घर है सूना आँगन, बिन भीगे गुजर गया सावन
दिल में उठती है गलन-जलन, न बाजे अब पायल छम-छम
घट-पनघट सब सूने हैं, सूने सारे चौबारे हैं
प्रेमदीप की ज्योति बिना, जीवन में सब अँधियारे हैं
हृदय के मन-मंदिर में, प्रेम का उजियाला चाहता हूँ
प्रिये ! अबकी बार तुम्हारे संग, दीपावली मनाना चाहता हूँ
यादों में उलझा लड़ी-लड़ी, दिल में हूँकें हैं आन पड़ी
आ जाओ प्रिये ! अनमोल घड़ी, मेरे सपनों की बनके कड़ी
काली दोमट सी रातों में, आकाश कुसुम तारों की तरह
जुड़ जाओ मुझसे कुछ ऐसे कि, जुड़ती जैसे अपनों से कड़ी
अमावस की स्याह यामिनी को, प्रेम की दामिनी से चमकाना चाहता हूँ
प्रिये अबकी बार तुम्हारे संग, दीपावली मनाना चाहता हूँ
—कुँवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह
★स्वरचित रचना
★©️®️सर्वाधिकार सुरक्षित
*यह मेरी स्वरचित रचना है |