प्रार्थना
तेरे दर पे आ गयी हूँ ,मुझे रास्ता दिखाओ।
मेरी जिन्दगी के माझी पतवार तुम चलाओ।।
तेरी कृपा का आदित्य प्राची से जब उगा है।
गयी रात तब अंधेरी, जग नींद से जगा है।
चढ़ रश्मियों के रथ पर, मन द्वार मेरे आओ।।
तेरी जमीं है तेरी जलधार औ आसमां रब।
सबसे बड़े प्रदाता अपना लो मुझको अब।
इस दुनिया के भंवर में मुझे और न फंसाओ।।
सारे जहां के मालिक गुणगान मैं करूँ क्या।
सुर शब्द मेरे सीमित होगा भी अब वयां क्या।
तूफान आँधियों से मुझे बचना अब सिखाओ।।
बहती नदी सा जीवन पर्वत सी मुश्किलें हैं।
अव्यक्त वादियों में बड़े व्यस्त सिलसिले हैं।
कंटक भरे सफर को आसान आ बनाओ।।
स्वरचित,मौलिक
मीरा परिहार’मंजरी’01/12/2018