प्राण- प्रतिष्ठा
‘प्राण प्रतिष्ठा’ चर्चा में है, सुर्ख़ियों में है । यदि इस शब्द-युग्म को माह जनवरी 2024 का शब्द-युग्म कहा जाय, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. चहुओर प्राण प्रतिष्ठा संगीत की लहरी पर गोते लगा रहा है। प्राण प्रतिष्ठा जो है, जैसा है, उसे कुछ मित्रों की बेहद मांग पर यथावत् रखने का प्रयास कर रहा हूँ, बिना किसी व्यक्तिगत टीका के, टिप्पणी के ।
सामान्यत : ‘प्राण’ शब्द को ‘जीवन’ के अर्थ में तथा ‘प्रतिष्ठा’ शब्द को ‘स्थापना’ के अर्थ में लिया जाता है। यदि शब्दार्थ के रूप में देखा जाय तो प्राण प्रतिष्ठा से तात्पर्य है – ‘प्राण शक्ति की स्थापना’ । हिन्दू धर्म में प्राण प्रतिष्ठा का वैदिक महत्व है तथा यह किसी मंदिर में किसी देवी या देवता की मूर्ति स्थापित करने से पूर्व का पवित्र व प्रचलित अनुष्ठान है। यह अनुष्ठान देवी या देवता की मूर्ति/प्रतिमा में उस देवी या देवता को जीवंत वास करने की प्रार्थना है, आह्वान है । यह अनुष्ठान आस्था व विश्वास का एक प्रतीक है । जब किसी प्रतिमा में एक बार प्राण प्रतिष्ठा हो जाती है, तो प्रतिमा जीवंत हो जाती है ।
‘प्राण प्रतिष्ठा’ के लिए विभिन्न रीति-रिवाजों तथा धार्मिक प्रक्रियाओं का पालन किया जाता है। प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व कई ‘अधिवास’ भी संपन्न किये जाते हैं । अधिवास एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें प्रतिमा को बारी-बारी से विभिन्न सामग्रियों में रखा जाता है अर्थात् निवास कराया जाता है। इसी क्रम में जब प्रतिमा को पानी में रखा जाता है तो उसे ‘जलाधिवास’ कहते हैं। जब प्रतिमा को अन्न में रखा जाता है, तो यह ‘धन्याधिवास’ कहलाता है। ऐसी मान्यता है कि प्रतिमा निर्माण के क्रम में जब मूर्ति पर शिल्पकार के औजारों से चोटें आ जाती हैं, तो वह अधिवास के दौरान ठीक हो जाती हैं। यदि प्रतिमा में कोई दोष है तो अधिवास के विभिन्न चक्र में इसका पता भी चल जाता है।
विभिन्न चरणों में प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया का अंतिम चरण ‘पट खुलना’ होता है। इस चरण में देवी / देवता की आँखों के चारों ओर सोने की सुई के साथ काजल की भांति अंजन लगाया जाता है। यह प्रक्रिया प्रतिमा के पीछे खड़ा होकर की जाती है। विश्वास है कि जब आँख खुलती है तो प्राण प्रतिष्ठित हो चुकी प्रतिमा की आँखों की चमक बहुत तेज होती है, जिससे सामने वाले को हानि हो सकती है। अंजन लगाने के बाद प्रतिमा की आँखें खुल जाती हैं और इस प्रकार प्राण प्रतिष्ठा की पवित्र मानी जाने वाली प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है।
प्राण-प्रतिष्ठा को बहुत ही सामान्य रूप से यहाँ बताने का प्रयास किया हूँ, जो बहुत ही व्यापक एवं विस्तारित है। प्राण-प्रतिष्ठा की वृहद् प्रक्रिया हिन्दू धर्मग्रंथों में उपलब्ध हैं। प्राण-प्रतिष्ठा विश्वास के साथ आह्वान है उस सूक्ष्म सत्ता का, जो हमें नेक मार्ग दिखाएगा और अपने आदर्शों पर चलने के लिए प्रेरित करेगा। यह हमारे विश्वास, हमारी धार्मिक मान्यताओं को संबल प्रदान करता है। विश्व का कोई भी धर्म मानव के उत्थान की बात करता है, उसे प्रतिष्ठित करने का जतन करता है। इसी कड़ी में हिन्दू धर्म में प्राण-प्रतिष्ठा विश्व बंधुत्व के लिए एक बेहतर जमीन तलाशता है। उबलते विश्व में शांति का सन्देश पहुँचाने का निमित्त बनता है। जन्मभूमि किसे प्रिय नहीं, फिर श्रीराम की तो बात ही अलग है। श्रीराम सबको मर्यादित करें, इसकी कामना तो की ही जा सकती है। किसी का दिल न दुखे, इसका ख़्याल रखा जाय तो निश्चय ही प्राण – प्रतिष्ठा के नेपथ्य में निहित भावना के प्रति हम ईमानदार होंगे । श्री राम की मर्यादा भी तो यही है ।