प्रसन्नता
प्रसन्नता बनी रहे
बनी रहे प्रसन्नता मिले सदैव प्रेम से।
नहीँ गिला न भेद भाव उर विराट स्नेह से।
बहुत बड़ी कृपा हुई मिला जो आप से हृदय।
दयालुता दिखी सदा मिला सहज पवन मलय।
सहर्ष ज्ञान-प्रेम दान का सदा उदाहरण।
दिखा सदेह साख्य भाव भव्य छंद व्याकरण।
न रोक-टोक था कभी विवाद था कभी नहीं।
सदैव शील भावना बनी रही नयी यहीं।
हुआ अगर गलत कभी क्षमा करो सखे सदा।
समझ इसे सदैव खेल मेल-जोल सर्वदा।
सुहावना सफ़र रहा न दिल कभी दुखी हुआ।
बने सप्रेम हमसफ़र हृदय सदा सुखी हुआ।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।