प्रसन्नता
प्रसन्नता आन्तरिक धरोहर है यह बाहरी सुख सुविधाओं से प्राप्त नहीं होता है ,अगर हमारे अंतर्मन में सकारात्मकता, उत्साह, उमंग है तो हमारी प्रफुल्लता कभी समाप्त नहीं होगी ।हमें अपना दृष्टिकोण बदलना होगा । हम जितना अधिक इच्छा रखेंगे उतना ही हमें कष्ट होगा क्योंकि जब वो पूरा नहीं होगा तो हमें विपरीत मनोदशा का सामना करना पड़ेगा, हमारा मन विचलित होगा व हम नकारात्मकता से घिर जाएंगे ।इसलिए आनंद व सुख की खोज स्वयं के अंदर करे इससे हमें प्रसन्नता की अनुभूति होगी व हमारा आत्मपरिष्कार होगा, और हमारा एक अद्भुत व्यक्तित्व उभरकर सामने आएगा।