Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 Aug 2024 · 3 min read

#प्रसंगवश….

#प्रसंगवश….
■ संचालन एक सलीक़ा
【प्रणय प्रभात】
किसी भी आयोजन में संचालक की भूमिका देह में प्राणवायु जैसी होती है। जिस पर आयोजन का परिणाम निर्भर करता है। हिंदी, उर्दू के रचनात्मक, अकादमिक व सार्वजनिक मंचों पर 30 साल संचालक रहा हूं। इस छोटे से अनुभव के आधार पर कुछ कहने का अधिकार मुझे भी है। उनके लिए, जो कभी न कभी, कहीं न कहीं इस दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं या करने जा रहे हैं।
इस आलेख के माध्यम से कहना केवल यह चाहता हूँ कि संचालन हर तरह के निजी आग्रह, पूर्वाग्रह, दुराग्रह या बलात महिमा-मंडन का नाम नहीं है। इस तरह के बेजा प्रयास से आप चंद लोगों के कृपा-भाजन बेशक़ बन जाएं, कोपभाजन उस व्यापक समूह के भी बन सकते हैं, जो श्रोता या दर्शक दीर्घा का हिस्सा होते हैं। इस भीड़ के मानस में आपकी छवि एक चाटुकार की बनती है। वो भी दीर्घकाल के लिए। जबकि इस एवज में मिलने वाली कृपा प्रायः मामूली, तात्कालिक या अल्पकालिक ही होती है। आप जिनका दम-खम से गुणगान करते हैं, उनके लिए आयोजन आए दिन के खेल हैं और संचालक महज उद्घोषक।
याद रखा जाना चाहिए कि संचालन संस्कारित व अनुशंसित शालीनता के प्रकटीकरण का नाम है। कुटिलतापूर्ण चाटुकारिता का नहीं। संचालक निस्संदेह मुखर हो पर वाचाल कदापि न हो, यह बेहद ज़रूरी है। समयोचित तर्कशक्ति और सहज, सरस वाकपटुता एक संचालक का विशिष्ट गुण होता है। जो स्वाध्याय व सतत अभ्यास सहित स्व-आंकलन के बाद वांछित सुधार से उपजता है। दुःख की बात है कि अब संचालन का अर्थ वाचालता और चाटुकारिता हो गया है।
मुझे याद आता है कि कुछ समय पहले एक विशेष समारोह में मंच संचालक ने एक स्थानीय संगीत शिक्षक को “‘संगीत सम्राट” कह कर संबोधित किया। जो संगीत शिक्षक का सम्मान हो न हो, धरती के एकमात्र संगीत सम्राट “तानसेन” का खुला अपमान अवश्य था। महाशय की यह न पहली चूक थी, न अनभिज्ञता। वे बीते कुछ बरसों से लगातार ऐसा करते आ रहे हैं। जो न केवल शुद्ध चापलूसी है वरन सैद्धांतिक शैली के ख़िलाफ़ व्यावहारिक मूर्खता भी। चाह चंद तालियों और थोथी वाहवाही की। जो दोयम दर्जे के पद व देहाती कार्यक्षेत्र में अर्जित कर पाना संभवतः आसान उनके लिए आसान नही।
इसी तरह एक कथित समाजसेवी और पूर्णकालिक संचालक ने एक राजनैतिक कार्यक्रम में तमाम छुटभैयों और चिरकुटों को स्थानीय भीड़ के बीच युवा हृदय सम्राट, श्रद्धेय, मान्यवर सहित तमाम विशेषणों से नवाज़ डाला। मज़े की बात यह है कि इनमें आधा दर्ज़न से अधिक लोग उनके अपने मोहल्ले के थे। जिनकी पहचान नशेड़ी, सटोरिये और समाजकंटक के रूप में थी। ऐसा एकाध बार नहीं, अनेक बार हुआ। जो आपत्तिजनक भी था और शर्मनाक भी।
मेरा अपना अनुभव है कि राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों को चाटुकार सदैव सुहाते हैं। उनसे इस तरह के मर्यादा-लंघन पर तात्कालिक क्रिया-प्रतिक्रिया की अपेक्षा मूढ़ता से अधिक कुछ नहीं। तथापि मुझ जैसे अकिंचन अपनी प्रवृत्ति से आज भी लाचार हैं। जो असंस्कार के नक्कारखाने में अपनी तूती बजाना नहीं छोड़ सकते। यही प्रयास आज फिर किया जा रहा है ताकि कल इस तरह की शाब्दिक उद्दंडता और वैचारिक मलेच्छता की पुनरावृत्ति न हो। यदि हो तो उसके विरुद्ध प्रतिरोध का एक स्वर किसी एक कोने से तो फूटे। इतना भरोसा तो है कि समागम की कोई सी भी यज्ञशाला ऐसी नहीं है जहां ग़लत के विरोध का साहस और सामर्थ्य रखने वालों का अभाव हो। आज नहीं तो कल इन धूर्तताओं के विरुद्ध स्वर उपजेंगे और वो भी पूरी दम के साथ।
इति शिवम। शेष अशेष।।

●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

1 Like · 22 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
आजाद पंछी
आजाद पंछी
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
पुष्पों की यदि चाह हृदय में, कण्टक बोना उचित नहीं है।
पुष्पों की यदि चाह हृदय में, कण्टक बोना उचित नहीं है।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
प्रकृति
प्रकृति
Bodhisatva kastooriya
Migraine Treatment- A Holistic Approach
Migraine Treatment- A Holistic Approach
Shyam Sundar Subramanian
यूँ तो हम अपने दुश्मनों का भी सम्मान करते हैं
यूँ तो हम अपने दुश्मनों का भी सम्मान करते हैं
ruby kumari
बेसबब हैं ऐशो इशरत के मकाँ
बेसबब हैं ऐशो इशरत के मकाँ
अरशद रसूल बदायूंनी
स्वयं से सवाल
स्वयं से सवाल
आनन्द मिश्र
महिलाएं अक्सर हर पल अपने सौंदर्यता ,कपड़े एवम् अपने द्वारा क
महिलाएं अक्सर हर पल अपने सौंदर्यता ,कपड़े एवम् अपने द्वारा क
Rj Anand Prajapati
*सच्चे  गोंड और शुभचिंतक लोग...*
*सच्चे गोंड और शुभचिंतक लोग...*
नेताम आर सी
कदम भले थक जाएं,
कदम भले थक जाएं,
Sunil Maheshwari
" रौशन "
Dr. Kishan tandon kranti
वक्त
वक्त
Dinesh Kumar Gangwar
लें दे कर इंतज़ार रह गया
लें दे कर इंतज़ार रह गया
Manoj Mahato
*काले-काले बादल नभ में, भादो अष्टम तिथि लाते हैं (राधेश्यामी
*काले-काले बादल नभ में, भादो अष्टम तिथि लाते हैं (राधेश्यामी
Ravi Prakash
महिला दिवस कुछ व्यंग्य-कुछ बिंब
महिला दिवस कुछ व्यंग्य-कुछ बिंब
Suryakant Dwivedi
अ आ
अ आ
*प्रणय प्रभात*
झूठ की जीत नहीं
झूठ की जीत नहीं
shabina. Naaz
तुम्हीं रस्ता तुम्हीं मंज़िल
तुम्हीं रस्ता तुम्हीं मंज़िल
Monika Arora
*A date with my crush*
*A date with my crush*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
ये खुदा अगर तेरे कलम की स्याही खत्म हो गई है तो मेरा खून लेल
ये खुदा अगर तेरे कलम की स्याही खत्म हो गई है तो मेरा खून लेल
Ranjeet kumar patre
मन मूरख बहुत सतावै
मन मूरख बहुत सतावै
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
कौन कहता है ये ज़िंदगी बस चार दिनों की मेहमान है,
कौन कहता है ये ज़िंदगी बस चार दिनों की मेहमान है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
Love's Test
Love's Test
Vedha Singh
I'd lost myself
I'd lost myself
VINOD CHAUHAN
कुछ लोग कहते है की चलो मामला रफा दफ़ा हुआ।
कुछ लोग कहते है की चलो मामला रफा दफ़ा हुआ।
Ashwini sharma
3959.💐 *पूर्णिका* 💐
3959.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
परिंदे बिन पर के (ग़ज़ल)
परिंदे बिन पर के (ग़ज़ल)
Vijay kumar Pandey
**हो गया हूँ दर बदर चाल बदली देख कर**
**हो गया हूँ दर बदर चाल बदली देख कर**
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
*मधु मालती*
*मधु मालती*
सुरेश अजगल्ले 'इन्द्र '
मुक्तक
मुक्तक
महेश चन्द्र त्रिपाठी
Loading...