प्रश्न ……
प्रश्न ……
प्रश्न प्रश्न प्रश्न
स्वयं को तलाशते
सैंकड़ों प्रश्न
क्या मैं
सदियों से वीरान किसी पूजा गृह की
काल धूल के आवरण से लिपटी
कोई खंडित प्रतिमा हूँ
या फिर
किसी हवन कुंड में
किसी मनोरथ की सिद्धि के लिए
झोंकी जाने वाली सामग्री हूँ
या फिर
विषधरों के दंश झेलता
कोई चंदन का विटप हूँ
या फिर
काल की आँधी में अपने अस्तित्व से जूझता
धीरे-धीरे विघटित होता
शिला खंड हूँ
या फिर
यथार्थ और आभास के मध्य
अपने अस्तित्व के क्षितिज को तलाशता
एक असहाय शून्य हूँ
प्रश्न सैंकड़ों और
उत्तर
प्रश्नों की बलिवेदी पर
सिर्फ़ शून्य छोड़ जाते हैं
और मन फिर उलझ जाता है
मैं कौन हूँ की प्रश्न दीर्घा में
सुशील सरना /