प्रश्न एवं उनके उत्तर
#जीवन_के_डगर_में_सङ्ग_चलने_को_लेकर_प्रेमी_का_प्रेयसी_से_प्रश्न
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उलझनों से हो पराजित
पथ विमुख गर मैं हुआ जो,
तब कहो तुम प्राणिके क्या
सङ्ग मेरे चल सकोगी?
बात जो भी हो हृदय में, बिन कहे ही जान लूँगा।
मैं तुम्हें प्रण दे रहा हूँ, जो कहोगी मान लूँगा।
पर कहो क्या तुम भी मेरी, वेदनाएं पढ़ सकोगी?
उन व्यथाओं से निसृत जो, मूर्ति क्या वह गढ़ सकोगी?
मान लो जब हो कलंकित
श्राप से शापित सभी पथ,
और उस शापित समय जब
जिन्दगी गमगीन होगी।
तब कहो तुम प्राणिके क्या
सङ्ग मेरे चल सकोगी?
हारकर संघर्ष से जो, मैं कभी भी टूट जाऊँ।
दंश से होकर व्यथित जब, मान लो मै रूठ जाऊँ।
लोग मेरी देख हालत, जब कभी भी मुस्कुराएँ।
और उस बेचारगी पर, तंज कस हमको जलाएँ।
सह न पाऊँ उस व्याथा को
मन कहे निज को मिटाऊं,
यंत्रणा के उस चुभन से
मैं बना मस्तिष्क रोगी।
तब कहो तुम प्राणिके क्या
सङ्ग मेरे चल सकोगी?
मैं तुम्हारी भावनाओं, को सदा सम्मान दूँगा।
हो भले अभिलाष जैसी, मैं उन्हें बस मान दूँगा।
किन्तु जीवन के डगर में, भाग्य का घट फूट जाये।
मान लो जो प्रण किया है, वह कभी जब टूट जाये।
प्रण निभाने को समर्पित
विधि लिखे से हार जाऊँ,
उस विधाता ने लिखा जो
विधि लिखे कारण अयोगी।
तब कहो तुम प्राणिके क्या
सङ्ग मेरे चल सकोगी?
गर्जना जब कर रहा हो, भाग्य पर दुर्भाग्य का घन।
विघ्न बाधा से विकल जब, टूटने को बाध्य हो मन।
जब कभी अपने परायों, सा करें व्यवहार पल -पल।
मित्रता छलने लगे जब, चक्षु में लेकर दूषित जल।
वेदनाओं की भँवर में
अंश तक मै धँस गया जो,
और मेरे सङ्ग चलकर
संगति बस तुम धसोगी।
तब कहो तुम प्राणिके क्या
सङ्ग मेरे चल सकोगी?
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
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#प्रेयसी_का_उत्तर
आपको होने न देंगे
जिन्दगी में हम पराजित,
हर कदम हर मोड़ पर हम
हाथ थामे हीं चलेंगे।।
आपका सम्मान रक्षण, जिन्दगी का एक मकसद।
ईश के संमुख हमेशा, वंदगी का एक मकसद।
आप ही को कर दिया है, सद्य यह जीवन समर्पित।
वेदनाएं धार कर अब, सुख तुम्हें प्राणेश अर्पित।
यंत्रणा में डूब कर भी
हर व्यथा को बाँध पल्लू,
जो अनल विधि हाथ आये
सङ्ग ही उसमें जलेंगे।
हर कदम हर मोड़ पर हम
हाथ थामें ही चलेंगे।।
है नहीं अभिलाष कोई, मान यश पद की न इच्छा।
साथ तेरा हो सदा बस, मैं करूँ तेरी प्रतिक्षा।
हार हो या जीत साथी, सङ्ग ही गाया करेंगे।
हो कुपित दिनकर यदि हम, पल्लू से छाया करेंगे।
सूर्य तेरे भाग्य का जब
अस्त होने को चला तब,
या ढ़ले प्रतिमान जब भी
सङ्ग ही हम भी ढलेंगे।
हर कदम हर हर मोड़ पर हम
हाथ थामे ही चलेंगे।।
प्रस्फुटित यदि वक्ष से जो, हो रहे हों हार के स्वर।
ईश के पग लोट कर हम, माँग लेंगे जीत का वर।
गर्जना जब भी करेगा, भाग्य पर दुर्भाग्य का घन।
विघ्न – बाधा से लड़़ेंगे, टूटने देंगे नही मन।
हिम महीधर सा कभी भी
जब गला अस्तित्व तेरा,
प्रण रहा अनुरक्ति का यह
सङ्ग ही तेरे गलेंगे।
हर कदम हर मोड़ पर हम
हाथ थामें ही चलेंगे।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिम चम्पारण, बिहार