प्रवासी चाँद
, प्रवासी चाँद
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ना जाने कब मन मचलेगा ,
पूछ रहा कवि प्रेयसि से !
पूछ रहा है खुद से भी वह-
क्या बोलेगा प्रेयसि — से !!
मन में बहुत ज्वार उठते हैं –
किसे नकारे किसे दुलारे !
ज्वार कौन सा प्रेयसि तेरा –
पूछ रहा प्रिय प्रेयसि से !!
रात दिवस का भेद नदारद ,
दिन है या है रात सनम !
सोना है या अब जगना है –
पूछ रहा प्रिय प्रेयसि से !!
चाँद प्रवासी हुआ चकोरा,
चली चकोरी मिलने हेतु !
मिल पायेगी चकवी प्रिय से-
पूछ रहा प्रिय प्रेयसि से !!
मन में क्या है आज बता दो,
ढुल-मुल उत्तर मत देना !
प्राणों से भी क्या मँहगी है –
पूछ रहा प्रिय प्रेयसि से !!
सदा वक्त पर नहीं छोड़ते ,
जिन को चाहत होती है !
आओ मिलो वक्त,वो ही है-
सुझा रहा प्रिय प्रेयसि से !!
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मौलिक-चिंतन
स्वरूप दिनकर, आगरा
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