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23 Aug 2022 · 1 min read

प्रवासी की पीड़ा

हमें अपने यहां ही काम जो मिलता
तो परदेश आख़िर क्यों आना पड़ता?
“चले आते हैं कहां से मुंह उठाकर”
बार-बार सुनना क्यों ताना पड़ता?
कुछ पैसों के लिए दुनिया के हाथों
अपना सब कुछ क्यों गंवाना पड़ता?
ओह, क्या सोचा था और क्या हो गया
ऐसे जीवन भर क्यों पछताना पड़ता?
Shekhar Chandra Mitra
#प्रवासी_की_डायरी #मज़दूर #बेरोज़गारी
#बेकारी #job #students #गरीबी #हक़

Language: Hindi
Tag: Poem
175 Views
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