प्रवासी की पीड़ा
हमें अपने यहां ही काम जो मिलता
तो परदेश आख़िर क्यों आना पड़ता?
“चले आते हैं कहां से मुंह उठाकर”
बार-बार सुनना क्यों ताना पड़ता?
कुछ पैसों के लिए दुनिया के हाथों
अपना सब कुछ क्यों गंवाना पड़ता?
ओह, क्या सोचा था और क्या हो गया
ऐसे जीवन भर क्यों पछताना पड़ता?
Shekhar Chandra Mitra
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