प्ररेणा
थोडे कभी, अधिक भी,मंजिल ओर बढे चल,
सफर सुहाने, दृश्य लुभावने, भूला कर कल,
जलाकर मशाल, छोड कर मिले सब मलाल.
पहुंच जायेगा जरूर, इतने से हौसले लिए चल
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस
थोडे कभी, अधिक भी,मंजिल ओर बढे चल,
सफर सुहाने, दृश्य लुभावने, भूला कर कल,
जलाकर मशाल, छोड कर मिले सब मलाल.
पहुंच जायेगा जरूर, इतने से हौसले लिए चल
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस