हाइकु–(5,7,5)–*प्रभु*
जीवन चक्र,
चलता निरंतर,
जीव हताश।
नहीं बुझती,
हृदय रुपी प्यास,
नर निराश।
जीव अभागा,
भटके निरंतर,
प्रभु की आस।
मन है शांत,
हृदय फेरे माला,
प्रभु का ध्यान।
प्रभु का नाम,
हृदय में मन्दिर,
हो भव पार।
✍माधुरी शर्मा मधुर
अम्बाला हरियाणा।