प्रभु संग प्रीत लगाई
**** प्रभु संग प्रीत लगाई *****
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प्रभु जी मेरे तुम संग प्रीत लगाई।
तेरे ही चरणों में है जन्नत समाई।
धरती पर हम जैसे हैं व्यभिचारी,
मैं में हैं डूबे बन कर अहंकारी,
तुम्हीं हो सहारा हम हैं हरजाई।
तेरे ही चरणों मे है जन्नत समाई।
तुम सा नहीं है जग का रखवाला,
नीली छतरी वाला बहुत मतवाला,
तेरा परचम जल-थल-नभ साईं।
तेरे ही चरणों मे है जन्नत समाई।
मानव तो सदा मानव का है वैरी,
महिमा तो सदा अपरंपार है तेरी,
तुम्हारी रज़ा में जगत की भलाई।
तेरे ही चरणों मे है जन्नत समाई।
हाड़-मांस का तूने पुतला बनाया,
सांस डाल सुंदर संसार दिखाया,
कोई न जाने जो लीला है रचाई।
तेरे ही चरणों मे है जन्नत समाई।
मनसीरत तेरे दर का है सवाली,
मनोहर बगिया का है तू ही माली,
नूर ए नजर तेरी जन-जन आई।
तेरे ही चरणों मे है जन्नत समाई।
प्रभु जी मेरे तुम संग प्रीत लगाई।
तेरे ही चरणों मे है जन्नत समाई।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)