प्रपात…..
प्रपात…..
मौन
बोलता रहा
शोर
खामोश रहा
भाव
अबोध से
बालू रेत में
घर बनाते रहे
न तुम पढ़ सकी
न मैं पढ़ सका
भाषा
प्रणय स्पंदनों की
आँखों में
भला पढ़ते भी कैसे
ये शहर तो
आंसूओं का था
घरोंदा
रेत का
ढह गया
भावों को समेटे
आँसुओं के
प्रपात से
सुशील सरना