प्रतीक्षा प्रहर
हृदय में मचा है कोहराम
कंठ हो गया जैसे बेजान
सांसें रुकी रुकी थमी हैं
शब्द होंठ पर आते नहीं है
प्रिये तुम्हारी प्रतीक्षा में
रात क्यों सोती नहीं है।
गीत के बोल हैं चुप
सुर साज पर सजते नहीं
झंकार नुपुर की रोके देखो
निशा नर्तकी स्तब्ध खड़ी है
प्रिये तुम्हारी प्रतीक्षा में
रात क्यों सोती नहीं है।
गुलों से भौंरे हैं उड़ जाते
सुन्न आधी रात गये बीते
तूफान की बाँह में जैसे
हर बेल आज च्युत पड़ी है
प्रिये तुम्हारी प्रतीक्षा में
रात क्यों सोती नहीं है।
टिमटिमाना छोड़कर विकल
सितारे भी जागते से होंगे
चाँद जैसे हो गया अकेला
हाय यह रात भी बैचेन सी है
प्रिये तुम्हारी प्रतीक्षा में
रात क्यों सोती नहीं है।
दीप की ज्वाला में प्रिये
निगाह पिरोये निस्तब्ध हूँ
साधना न टूट जाऐ कहीं
सोच आँसू बहते नहीं हैं
प्रिये तुम्हारी प्रतीक्षा में
रात क्यों सोती नहीं है।
-✍श्रीधर.