प्रतिस्पर्धा अहम की….
मैं मेरी दिनचर्या के आधार पर ही आज भी जब अपने घर से विद्यालय जाने के लिए निकली । ट्रेन से उतर कर विद्यालय तक जाने के लिए 30 मिनट की पैदल यात्रा में प्रतिदिन किया करती थी। यह मेरा अभ्यास भी है और मेरे सेहतमंद रहने का जरिया भी। आज भी मैं रोजमर्रा की ही तरह अपने धुन में चली जा रही थी, ढेर सारी चिंताओं में मग्न कि विद्यालय में किन-किन चीजों पर अभी काम करना बाकी है , किन-किन पाठ्यक्रमों को सजाना है । इन्हीं सब विषयों पर सोचते- सोचते अपने रास्ते को तय कर रही थी, कि अचानक एक गली से एक युवक बड़ी ही तेजी से चलता हुआ मेरी ओर आ रहा था। उस युवक ने पुलिस की वर्दी पहनी थी और वह बड़ी ही तत्परता से आगे बढ़ रहा था। मैंने उसकी तरफ क्यों देखा ? यह घटना भी बड़ी दिलचस्प है। यूं तो मैं रास्ते में चलते समय किसी पर ध्यान नहीं देती किंतु उस युवक पर ध्यान देना मेरी मजबूरी थी। हुआ कुछ यूं कि वह पहले तो कुछ कदम मुझसे पीछे चल रहा था , करीब 10 मिनट के बाद ही मैंने देखा कि वह मेरी बराबरी में आ गया किंतु फिर कुछ ही मिनटों बाद मेरे गति की बराबरी नहीं कर सका। मैं इस बात को आसानी से भूल जाती किंतु फिर मैने देखा कि इस बार वह बड़ी कोशिश कर रहा था तेजी से चलने की। वह तेजी से चलता किंतु मुझसे थोड़ा आगे जाकर फिर वह अपनी गति को सामान्य अवस्था में ले आता। किंतु मेरे वेग में असमानता नहीं थी। मैं यह नहीं समझ पा रही थी कि उसे मुझसे आगे रहने की क्या आवश्यकता थी? उसे किस प्रकार की घबराहट थी , कैसी बेचैनी थी कि वह अथक प्रयास कर रहा था , और कुछ ही मिनटों के बाद वह मुझसे कुछ कदम आगे हो गया । मुझे उसका ऐसा करना अत्यंत ही अटपटा सा लगा क्योंकि सामान्य तौर पर कोई किसी को हराने के लिए इस तरह की चाल तो नहीं चलेगा। किंतु उसका यह व्यवहार सामान्य तो कतई नहीं था। मैं निरंतर अपने वेग से चल रही थी , फिर कुछ दूरी पर ऐसा हुआ कि मैं उससे थोड़ा आगे निकल गई जैसे ही मैं उससे थोड़ा आगे निकल गई वह फिर विचलित सा हो गया। उसके बाद तो जैसे उसमे मुझसे आगे रहने की ठान ली और वह आगे आ भी गया तब उसने शायद यह समझ लिया कि उसे मुझसे आगे रहने के लिए अपने वेग में निरंतरता बनाए रखनी पड़ेगी । फिर मैंने उसके व्यवहार में एक अजीब सी अधीरता देखी, वह बार-बार कनखियों से मेरी ओर इस कदर देख रहा था कि कहीं मैं उससे आगे ना निकल जाऊं। उसके इस सतर्कता को मैंने भांप लिया , मैं समझ गई कि कहीं ना कहीं उसे यह महसूस हो रहा था कि वह एक पुलिस की वर्दी में है तथा वह यह कि पुरूष भी है, उसके बावजूद वह एक स्त्री से किस तरह पीछे रह सकता है। फिर एक समय को तो ऐसा आया कि उसने मुझसे आगे रहने के लिए थोड़ी दौड़ भी लगा दी। उसने जैसे अपने मन में मुझे अपना प्रतिद्वंदी मान लिया हो। उसका यह व्यवहार उपहासजनक था।
उस युवक के स्वभाव ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर यह क्या था यह एक अहम की प्रतिस्पर्धा थी । यह जो हम दोनों के बीच में एक अनकही बातचीत थी, एक अनजाना टकराव था क्या इसकी कोई आवश्यकता थी ? नहीं, इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी। बस यह समझना था कि सबका अपना-अपना स्थान है, अपनी अपनी सीमाएं है और सबकी अपनी – अपनी अलग योग्यताएं होती है। प्रतिस्पर्धा के अंधी दौड़ में किसी को नीचे गिराने की कोई आवश्यकता नहीं है।
स्त्री यदि पुरुष से दो कदम आगे भी चले तो इससे उनका कोई नुकसान नहीं है । नारी की योग्यता यदि पुरुषों के अहम को चोट पहुंचाती है, तो समाज का विकास तो फिर “दिल्ली दूर है” ।
जरूरत है सहयोग की ना की प्रतिस्पर्धा की। विकास तभी संभव है जब और पुरुष के बीच में किसी तरह का टकराव ना हो, आज के दौर में नारियां विकास के चरम स्तर पर पहुंच चुकी हैं।
वे हर क्षेत्र में अपने पैर पसार रही है। उनसे घबराने की कतई आवश्यकता नहीं है । हाथ से हाथ मिला कर आगे बढ़ने की आवश्यकता है, हाथ खींच कर पीछे कर देने से किसी की योग्यताएं क्षीण नहीं हो जाती । अतः अहम को इस कदर पोषित ना करें क्या आपका व्यवहार असामान्य लगे। स्त्री और पुरुष का परस्पर साथ ही समाज और देश के विकास का आधार है।
धन्यवाद 🙏
ज्योति ✍️