प्रतिभा परिचय प्रेम (गीतिका छंद)
दिल की बात
प्रतिभा परिचय प्रेम
गीतिका छंद 14/12
2122 2122 ,2122 212
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हो छिपी प्रतिभा कहीं भी,देश
भर से ला रहे।
रोज ही शेमारु चैनल,पर नये कवि आ रहे।
हों युवा या बाल बूढ़े,देखकर आनंद लें ।
बाग घर में बैठ कर ही ,ज्यों भ्रमर मकरंद लें।
हो हँसी वातावरण में, चेतना उद्देश्य है।
चटपटी चटनी मिलाकर, शुद्ध मन से पेश है।
हर मसाला पीस लोढा, भाव की सिल पर धरे।
भोज सादा शाकहारी,दूर मनहूसी करे।
पी रहे हो तो मिलाने,पास सोडा चाहिए।
आशिकी में ख्याल भी रंगीन थोड़ा चाहिए।
दिल कहे मुग्धा स्वकीया,
या नवोढ़ा चाहिए।
है जरूरत मंच की, शैलेश लोढा चाहिए।
सोचते हैं बात करते, बंद दरवाजे खुले।
यों लगे हर आदमी को, दूध में मिसरी घुले ।
नाम भारी काम भारी,कम्प्यूटर भी फेल है ।
ज्ञान गरिमा है विलक्षण,हास्य रस का खेल है।
कब कहाँ क्या चाहिएपल,में
खुलासा दें बता।
दी प्रभू ने भाव पढ़ने,की गजब की योग्यता।
काव्य के हर अंग का रस, रंग का आल्हाद है।
मिल गुरू जी खुश हुए हैं,खूब आशीर्वाद है।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
7/12/22