प्रतिगीत
गीत तर्ज …हमने देखी है इन आँखों की ..
प्रतिगीत …सृजन
प्रतिगीत …
हम ने देखी हैं तेरे दिल से निकलती आरज़ू,
ख़ुद ही छूके इसे आँखों से असकाम न दो
सिर्फ इबादत है दिल से इसे महसूस करो,
प्रीत को प्रीत ही कहने दो कोई दाम न दो
हम ने देखी हैं…..
ख़्याल कोई गैर नही, ख़्याल परवाज़ नहीं,
एक मदहोशी है डरती है ,तब तो करती है,
ना ये रहती है ना कहती है ना डराती है कहीं,
ओस की बूँद है, गुलशन में मिला करती है
सिर्फ इबादत है दिल से इसे महसूस करो,
प्रीत को प्रीत ही कहने दो कोई नाम न दो
हम ने देखी हैं…..
झिलमिलाहट सी लगी रहती है बातों में कही,
और अश्कों के हवाले से छुपे रहते है,
तुम कुछ समझते नहीं, धड़कता दिल है मगर,
कितने मायूस है परवाने झुके रहते है,
सिर्फ इबादत है दिल से इसे महसूस करो,
प्रीत को प्रीत ही कहने दो कोई दाम न दो
हम ने देखी हैं…..
हमने देखी हैं रूह में उतरती नजरें,
ठिठुरती रात तुमने छुआ था मुझको।
उच्छवासों के उन्वान पे रची थी कविता
अपने पहलू में तुमने लिया था मुझको।
सिर्फ इबादत है इसे ,दिल से महसूस करो
प्रीत को प्रीत ही रहने दो कोई दाम न दो।।
दूर रहना ही अगर गवारा था तुझको
गीत चाहत के वो सुनाये क्यों थे।
तेरी खामोशी को कैसे समझें हम
मौन हो कर अश्क वो बहाये क्यों थे।
सिर्फ इबादत है इसे दिल से महसूस करो
प्रीत को प्रीत ही रहने दो कोई दाम न दो।।
#असकाम –बददुआ
मनोरमा जैन पाखी