#प्रणय_गीत:-
#आत्मकथ्य_और_गीत
■ प्रणय की बात : गीत के साथ
“आज के ऊहा-पोहा भरे जीवन की गाड़ी चलाने के लिए दिन-रात की दो अलग-अलग पारियों में अपनी बारी के मुताबिक़ केवल काम और जीवन देखते ही देखते तमाम।”
बस, आज की दुनिया के इसी कड़वे सच के बीच धड़कते युवा दिलों की पीड़ा और त्रासदी को मुखर करना हो तो उसका बस एक ही माध्यम है और वो माध्यम है प्रणय-वेदना से भरा एक गीत।
एक ऐसा गीत जो अस्तित्व पाने के बाद आप जैसे सुधि मित्रों को जीवन की आपाधापी में दम तोड़ते जज़्बातों से परिचित करा सके। मन को मनन पर बाध्य कर सके।
ऐसे एक गीत के लिए ज़रूरी हैं भावों के अनुरूप बिम्ब और प्रतिमान। जिसे लेकर एक प्रयोगधर्मी गीतकार के तौर पर मैं सदैव कल्पनारत रहता हूँ। आज भी हूँ, एक अनूठे गीत के साथ।
मन हो तो मन से ही पढ़िएगा। रात की तन्हाई को सिरहाने लगा कर। उन दिनों को ज़हन में रख कर, जब हम भी जवान थे। तमाम पाबंदियों के बावजूद इस तरह की मजबूरियों से कोसों दूर। कुछ महसूस कर पाएं तो मुझे भी बताएं, लेकिन संजीदगी के साथ। शुक्रिया दिल से, आपकी इनायतों व नवाज़िशों के नाम। अब पढ़िए गीत-
#प्रणयगीत
■ रात-रानी और सूरजमुखी
◆ आँसुओं की जुबानी सुनो।
प्रेम की है कहानी सुनो।।
एक होता था सूरजमुखी,
एक थी रात-रानी सुनो।।
◆ एक दिन का शहंशाह था,
एक थी मल्लिका रात की।
देख लेते थे आपस में पर,
थी ना मोहलत मुलाक़ात की।
थी मचलती जवानी सुनो।
प्रेम की है कहानी सुनो।।
◆ एक पर धूप सा रूप तो,
एक पर चाँदनी सी चमक।
एक पर खुशनुमा रंगतें,
एक पर मदभरी सी महक।
रुत थी सच में सुहानी सुनो।
प्रेम की है कहानी सुनो।।
◆ इसका यौवन था दिन पे टिका,
उसकी उम्मीद थी रात पर।
थी इधर जागती बेबसी,
तो उधर करवटें रात भर।
हो न पाए रुमानी सुनो।
प्रेम की है कहानी सुनो।।
◆ दिन महीने गुज़रते गए,
हाल हद तक हठीले हुए।
हाथ हल्दी नहीं लग सकी,
पात दोनों के पीले हुए।
अब थी दुनिया विरानी सुनो।
प्रेम की है कहानी सुनो।।’
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)