अतिप्राचीना च नूतन: संस्कृत: श्लोक:
अतिप्राचीना संस्कृत: श्लोक:
उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
यथा सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति न मुखेन मृगाः।।
हिन्दी भावार्थ: कार्य परिश्रम करने से सम्पूर्ण होते हैं, मन में इच्छा करने से नहीं। जैसे सोते हुए शेर के मुंह में मृग अपने आप प्रवेश नहीं करते। उनका शिकार करने के लिए शिकारी को दौड़ना पड़ता है।
नूतन: संस्कृत: श्लोक:
सर्वदा हि न सिद्ध्यन्ति कार्याणि उद्यमेन ।
यदा-कदा कार्याणि सिद्ध्यन्ति नियति ।।
हिन्दी भावार्थ: हरदम परिश्रम करने से कार्य सम्पूर्ण नहीं होते हैं, कभी-कभी नियति (भाग्य) का सहारा भी कार्य को पूर्ण करने में सहायक होता है। पानीपत के द्वितीय युद्ध (1556 ई.) में जब सेनापति हेमू विजय के करीब था, तब एक तीर उसकी आँख में लगा और युद्ध का दृश्य ही बदल गया! हारती हुई मुग़ल सेना को इस प्रकार भाग्य के सहारे ताज मिला व वीर हेमू को अकबर की सेना का नेतृत्व करने वाले बैरम खां जैसा यमराज। इसी प्रकार पानीपत के तृतीय युद्ध (1761 ई.) में जब लग रहा था सदाशिवराव “भाऊ” विजयी होगा। तभी एक गोली भाऊ के पुत्र को लगी और भाऊ हाथी से उतर कर घोड़े पर आ गया। मराठा सैनिक समझे की भाऊ मारा गया और मराठा फौज में भगदड़ मच गई। अतः हार मान चुका आतताई आक्रमणकारी अहमदशाह अब्दाली इस प्रकार भाग्य के सहारे विजयी हुआ।