प्रगतिशील कवि,
कवि हूँ तो पतन को स्वीकार करता हूँ,
यथार्थ की जुबां पे अधिकार करता हूँ,
गा तो सकता हूँ पर दिल नहीं करता,
काव्य में पैबोस को इंकार करता हूँ,
हर युग का अपना तो इतिहास रहा है,
कुछ का कलंकित कुछ का खास रहा है,
कहानी उन्हीं की बस याद रह जाती है,
दिल जिनका बंचितों के ही पास रहा है,