प्रकृति
ताटंक छंद आधारित गीत
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प्रकृति अद्भुत अति मनोहारी, लगती कितनी प्यारी है।
मोहित मन को करती है तू, तेरी लीला न्यारी है।
कभी गगन में दिखते तारे,
घिरती बदरा काली है।
कहीं पत्रविहीन शाखाएँ,
सभी ओर हरियाली है।
रंग बिरंगे तितली-भौरें, हरी भरी फुलवारी है।
प्रकृति अद्भुत अति मनोहारी, लगती कितनी प्यारी है।
कहीं बहे सरिता की धारा,
कहीं समंदर ,खाड़ी है।
कहीं पुष्प हैं डाली-डाली,
कहीं कटीली झाड़ी है।
कहीं भयानक दिखते मंजर, कहीं सुखद किलकारी है।
प्रकृति अद्भुत अति मनोहारी, लगती कितनी प्यारी है।
कभी निशा है पूनम वाली,
कभी भयानक काली है।
कभी धूमिल कोहरा फैला,
कभी सूर्य की लाली है।
कहीं ठिठुरती सर्द हवाएँ, गर्मी पड़ती भारी है।
प्रकृति अद्भुत अति मनोहारी, लगती कितनी प्यारी है।
नष्ट नहीं इसको होने दो,
ये सबसे सुखकारी है।
संरक्षण इसका तुम करना,
वरना ये दुखकारी है।
ये फल -फूल हवा पानी दे, माँ-सी ममता वारी है।
प्रकृति अद्भुत अति मनोहारी, लगती कितनी प्यारी है।
लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली