प्रकृति
शिखरिणी छंद ।
सघन वन ।
खोते अस्तित्व ।
भीगे नयन ।।
कैसे हो वर्षा ।
खत्म होते पेड़ ।
मन तरसा ।।
हमें है लोभ ।
तभी तो काटे वृक्ष ।
नहीं है शोक ।।
न छेड़ मुझे ।
प्रकृति हूँ,जीवन ।
देती हूँ तुझे ।।
पूछती नानी ।
पानी कहाँ से आये ।
सूखी हिमानी ।।
आरती लोहनी