प्रकृति से न करो खिलवाड़।
बहुत समय पहले की बात है।
जंगल के पास एक गाँव में दीनू अपने परिवार के साथ रहता था।
वह एवं अन्य ग्रामीण सूखी लकड़ियों को जंगल से लाकर शहर में बेचते थे और अपना जीवनयापन करते थे।
गाँव में खुशहाली छायी हुई थी।वहाँ प्रकृति की अनुपम छटा देखते ही बनती है। चारों ओर हरियाली,पहाड़ों के बीच से बहते हुए झरनें, पक्षियों की मधुर आवाज़ सब कुछ वहाँ रहने वालों के मन को आनन्दित करता था।
कहते हैं,”विनाशकाले विपरीत बुद्धि”
सहसा गाँव वालों में अत्यधिक पैसा कमाने की लालसा स्फुटित हो गयी और अपने स्वार्थ के वशीभूत उन्होंने जंगल से हरे भरे पेड़ की लकड़ियों को काटकर शहर में बेचना शुरू कर दिया। उस जंगल में वृक्ष पर एक दैत्य रहता था,जब ग्रामीणों ने वह वृक्ष भी काट दिया,तो दैत्य के क्रोथ की ज्वाला भड़क उठी और उसने गाँव जाकर लोगों को आतंकित करना प्रारम्भ कर दिया।
जो भी व्यक्ति अपने घर से बाहर निकलता,दैत्य उसको अपनी चपेट में ले लेता। धीरे धीरे कई ग्रामवासी उस दैत्य की चपेट में आ गए। ग्रामवासियों ने उसके डर से घर से बाहर निकलना बंद कर दिया।
धीरे धीरे घर में जमा राशन भी खत्म होने लगा। घर में अन्न की कमी और घर के बाहर उस दैत्य का खौफ़।
कहते है कि मुसीबत के समय सबको केवल भगवान का आसरा होता है। सबने अपने अपने तरीके से ईश्वर की पूजा अर्चना शुरू कर दी। दीनू भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। वह गाँववालों की रक्षा और भगवान को प्रसन्न करने के लिये उपवास रखने लगा।
एक दिन भगवान ने उसको स्वप्न में दर्शन दिये। उनको साक्षात अपने सम्मुख देखकर, वह फूट फूट कर रोने लगा और गाँववालों को इस समस्या से निकालने की याचना की।
इस पर भगवान बोले कि गाँववालों ने प्रकृति के साथ अनावश्यक खिलबाड़ किया है। पक्षियों को इन वृक्षों पर आश्रय मिलता है, अपने स्वार्थ के लिए,गाँववालों ने इनका घरौंदा ही उजाड़ दिया। यदि सब मिलकर नए नए पेड़ लगाए, अपने आसपास का पर्यावरण स्वच्छ रखे,नदियों को साफ सुथरा रहने दें,तो उनके ऊपर कभी भी कोई भी विपदा नहीं आएगी और वह दैत्य भी जंगल में वापस चला जायेगा।
दीनू ने यह बातें गाँववालों को बताने का निश्चय किया परन्तु समस्या यह थी कि वह घर से बाहर कैसे निकले। उसको एक युक्ति सूझी,वह अपना पूरा मुँह ढककर घर से बाहर निकला। दैत्य सिर्फ मनुष्यों से क्रोधित था, उसने दीनू को कोई और प्राणी समझकर उस पर हमला नहीं किया।
दीनू ने बारी बारी से हर घर में जाकर अपने स्वप्न वाली घटना गाँववालों को बतायी और दैत्य से बचने के लिये मुँह ढककर निकलने को कहा।
सभी गाँववाले दीनू पर बहुत विश्वास करते थे,इसलिये उन्होंने भगवान के कथनानुसार नए वृक्ष लगाने प्रारंभ कर दिए।
कुछ ही महीनों में जंगल फिर से हरे भरे हो गए,और वह दैत्य भी जंगल वापस चला गया।
‘दिखाकर प्राकृतिक आपदा का रौद्ररूप,
समझा रही प्रकृति मानव को बारबार,
समय रहते न सुधरे हम इंसान अगर,
भावी पीढ़ी को सहनी पड़ेगी इसकी मार’।
सभी ग्रामवासियों को सबक मिल चुका था और वह पहले की तरह शांतिपूर्वक सादगीपूर्ण तरीके से अपना जीवनयापन करने लगे।
By:Dr Swati Gupta