प्रकृति की गोद : मसूरी
बर्फ से लदे खड़े, पहाड ये तने खड़े।
प्रकृति की गोद मे, वृक्ष है घने खड़े।।
गर्व है ये देश का, सम्मान से बने खड़े।
संस्कृति सम्भाल के, आन से अडे खडे।।
अडे खडे चढे खडे, एक दूसरेके बने खडे।
प्रेम में पडे-पडे, सदियोंसे है बने खडे।।
मसूरी की गोद और, आते जाते लोग है।
आते जाते लोगो का, दृश्य ये विचित्र है।।
चित्र भी विचित्र है, वादियां विचित्र है।
प्रेम से भरी पड़ी, फिजाएं ये विचित्र है।।
कोई देश का यहा, कोई परदेश से।
देखने को दृश्य ये, आते विदेश से।।
कोई कहता स्वर्ग है, कोई बहुत खूब है।
लोग भी लगे यहा, बिल्कुल देवदूत है।।
देवदार है कही, चीड, साल है कही।
घनघोर सम्पदा, मनमोहक है यही।।
पहाडियो के पेड ये, पेड़ो की पहाड़िया।
देश भक्ति से भरी, सारी ये पहाड़िया।।
पतली-पतली रोड है, भीड बेजोड है।
हर मोड पर यहा, प्रेम का ही शोर है।।
आइये चलो चले, देखने इन्हे चले।
देखने इन्हे बहुत, आते-जाते लोग है।।
==========================
“ललकार भारद्वाज”