प्यास से व्याकुल परिंदे
जा रहे हो,
ठीक है पर खुश रहो तुम ,
हम कोई वीरान मरुथल ढूँढ़ लेंगें।
पाँव में जब फट रही होगी विबाई।
भाव होगें सब हृदय के आतताई।
दन्द्व में यूँ,
प्यास से व्याकुल परिंदे ,
कंकड़ों को डाल घट, जल ढूँढ़ लेंगें!
हर हृदय में एक शोला जल रहा है।
हर कदम पर क्या जगत ये छल रहा है?
जिंदगी के,
प्रश्न जो उलझे रहेंगे ,
उम्र के संघर्ष में हल ढूँढ़ लेंगें!
चित्र पिछले आँख में जब आ गडेंगे ।
स्वप्न तब सारे बिलखकर रो पड़ेंगे।
सच यही है,
जो मिला तुमसे, भुलाकर ,
आज से अच्छा कोई कल ढूँढ़ लेंगे!
मौत से अच्छा है यदि कुछ हम करेंगे।
प्रेम में पागल थे, पागल हो मरेंगे।
ले मजीरा,
कर भजन यमुना किनारे ,
तान में आनंद के पल ढूँढ़ लेंगे!
—©विवेक आस्तिक