प्यासी तड़प
देखा जो तेरा, खिल हुआ मुखड़ा,
बनना चाहा, तेरे दिल का टुकड़ा l
चाहत में प्यासा, जीता पपीहा,
स्वाति बूँद की, बनती मसीहा l
अगर मिलती ना, कोई बूँद “स्वाति”,
दुनिया चातक को ही सराहती l
उसका कसूर, बस प्यार ही होता,
ना सागर, नदी, ना ताल को रोता l
एक दौर ऐसा भी आया,
जब स्वाति से धोखा खाया l
रहा तड़पता बूँद चाह मे,
ले ज़ख़्म प्यास का मरा राह में l
“संतोषी” ऐसी तड़प मे जीना,
मिली बेवफाई, पर तेरी याद गई ना ll