प्यार ही ईश्वर है
प्यार ही ईश्वर है
मात्र भार 11/11
करो सभी से प्यार,यही मधु जीवन है।
हो इसका सत्कार,यही प्रिय उपवन है।
केवल देना सीख,यही अनुशासन है।
नहीं करो तुम आस,दान का शासन है।
निर्मल हो मन प्यास,भूख हो देने का।
भावन हो बस एक,नहीं कुछ लेने का।
रहो सहज गम्भीर,चाल मतवाली हो।
दिल हो नित खुशहाल,प्यार की प्याली हो।
याचन करना त्याग,स्वयं प्रिय अनुपम हो।
तुम्हीं ब्रह्म ब्रह्मांड,प्यार स्रोत सर्वोत्तम हो।
अपने का पहचान,स्वयं की आशा हो।
बनो दिव्य इंसान,स्वयं अभिलाषा हो।
मांगों कभी न प्यार,माँगता मंगन है।
अपने में ही देख,अनूठा कंगन है।
इसे माँगना पाप,राम अनुशीलन हो।
कुत्सित दूषित लोग,आत्म सम्मेलन हो।
सहा वही अपमान,प्यार जो माँगा है।
प्यार सच्चिदानंद,हृदय में जागा है।
करो स्वयं से प्यार,कर्म अति पावन हो।
सात्विक मोहक धार,हृदय वृंदावन हो।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।