मेरे मोहसिन नज़्म
मेरे मोहसिन नज़्म
Nazam
मेरे मोहसिन तुम्हारी फ़िक्र मे दिन रात घुलती हूं.
मैं अदना सी वो लड़की हूं जो तुमसे प्यार करती हूं
मेरे मोहसिन तुम्हारी हर अदा पे सदके जाऊं मैं.
मुहब्बत हो गई मुझको सुकूँ अब कैसे पाऊं मैं..
हो चारागर बहुत पहुँचे, शफ़ा है जिसके हाथों में
मर्ज़ को दूर कर देते हो क्या तुम अपनी बातों से..
सुनों दो बात मुझसे भी करो,पूछो मैं कैसी हूं..
चलो मैं ही बताती हूं . मैं बिन पानी के जैसी हूं.
तेरे झूठे से वादों की बदौलत खिल रही हूं मै..
तुम्हारी ज़िन्दगी में संग सी बोझिल रही हूं मै..
गिला कुछ भी नही तुमसे तुम्हारा साथ काफ़ी है..
जगह दिल मे नहीं देते तो बस ये हाथ काफ़ी है..
मेरे मोहसिन तुम शामिल हो मेरी इस ज़िन्दगी में यू.
नई सुबह की बारिश को लबों की तिश्नगी हो ज्यूँ
मेरी आँखों के दरियाँ में उतर कर देख लो इक दिन.
अना सारी ये दरियाँ मे ही आकर फेंक दो इक दिन
कभी आके यू ही तन्हाई में;तुम महसूस करना ये दिल
कभी क्या साथ चलने से मिलेगी हमको वो मंज़िल.
सुनो मोहसिन मुझे अच्छा लगेगा आपका आना.
यक़ीनन आ गये गर तो नहीं तुमको कही जाना.
सुनो दरवेश अब मेरे, खड़े क्यों द्वार पे मेरे
चले आओ बुलाती हूं ,करो तुम पार ये घेरे.
मैं आँचल को बिछाकर कर रही हूं आप का स्वागत.
चले आओ भ्रमर मैला नही है .. प्रेम का ये पथ.
@मनीषा जोशी
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