प्यार की नयी शुरूआत
“उस शाम कंपनी का काम खत्म करके पूर्वी घर पहुंची, देर हो गई थी, थक भी गई थी ” हाथ-मुंह धोकर रिफ्रेश हुई । मां ने बड़े प्यार से कहा, पहले चाय-नाश्ता कर लें बेटी । पूर्वी ने उदास मन से कहा, हां मां! फिर वह बोली मां बैठो न थोड़ी देर मेरे पास, तुमसे कुछ बातें करनी हैं, “पापा के जाने के बाद एक तुम ही तो हो न मां “जिससे मैं अपने मन की बात कह सकती हूं । तुम ही तो मेरी दोस्त हो……. बाकी सब कुछ ।
मां पूर्वी के बाल सहलाते हुए, बोल बेटी तेरे मन की भाषा मैं समझती हूं! बोल, फिर उसने मां को बताया, पूर्वी की कंपनी में ही शुभि नामक उसकी सखी साथ में काम करती है न, जो जल्दी विधवा हो गई बेचारी और अपने माता-पिता, भैय्या-भाभी व भतीजी के साथ ही रहती है । आज पूर्वी को धक्का सा लगा, जब कंपनी के मालिक शेखर ने शुभि से शादी करने से साफ इंकार कर दिया । इसीलिए हैरान परेशान सी घर में आई, इसी सोच के साथ कि यदि किसी महिला के पहले पति की मौत किसी हादसे में हुई हो और यदि वह किसी से पुनः प्यार करे और शादी भी करें तो हर्ज ही क्या है?? क्या ये समाज और घरवालों की सोच सकारात्मक परिणाम नहीं निकाल सकती?? यह सुनकर मां ने कहा, पूरी कहानी शुरू से बता बेटी मुझे, तभी तो मैं हल बता पाऊंगी ।
पूर्वी ने बताना शुरू किया” शेखर बहुत ही नेक और खुले विचारों का है” वह इस कंपनी के कार्य संपन्न करता है । जहां दूसरी ओर उसकी मां जानकी देवी चार कंपनियों के कार्य देखती, शेखर के पिता जाने के बाद वही अपने पूर्ण व्यवसाय संभालती हैं । घर में बस शेखर के नाना-नानी साथ में रहते, घर की देखभाल भी करते हैं । उन्होंने बहुत लाड़-प्यार से पाला है शेखर को और साथ ही शेखर ने अपनी पढ़ाई पूरी कर व्यवसाय चलाने के लिए मुंबई में अच्छे संस्थान से प्रशिक्षण भी लिया । शेखर को मालूम है कि व्यवसाय को सुचारू रूप से चलाने के लिए उसकी मां ने कितनी मशक्कत की है, साथ ही बड़े अरमानों से पाला भी है उसे ।
शुभि की मैंने ही मदद की मां, मैंने सोचा पढ़ी-लिखी है, ऐसा हादसा हो भी गया है उसके साथ तो वह खाली तो नहीं बैठ सकती न मां । उसका अकेला भाई एक कंपनी में नौकरी करता है, उतनी ही उसको भी सहायता…. एक तो मुंबई और वहां की महंगाई …. बेटी भी पढती उसकी…. दोनों भाई-बहन घर का खर्च चलाते । पति जाने के बाद बहुत गुमसुम और उदास हो गई थी, शुभि । मैं जानती हूं उसको मां,” वो पहले तो ऐसी न थी” ससुराल वालों ने भी मायके भेज दिया । मैंने उसे सहारा देकर कंपनी में नौकरी दिलायी मां ताकि वह जी सके, मोहताज ना बने किसी की । ठीक किया न मां मैंने, हां बेटी बिल्कुल सही किया,” ऐसे में तो मदद करना चाहिए न” ।
शुभि ने धीरे धीरे कंपनी में अपने कार्य को पूरा करते हुए अपने आप को संवारा और सहारा भी बनी भाई का । ” शेखर और शुभि साथ ही में कार्य करते हुए कब उन दोनों के बीच रिश्तों का ये समुंदर प्यार में बदल गया” यह उनको भी पता नहीं चला” । रोज शुभि के साथ घूमने जाना, रेस्टोरेंट में खाना खाने जाना और घर छोड़ने जाना, ” यह सब होने लगा ।
वो कहते भी हैं न मां ” प्यार किया नहीं जाता हो जाता है ” प्यार किसी बंधन का मोहताज नहीं है न मां । प्यार वह खूबसूरत एहसास है” जिसमें दो दिलों का मिलन हो “। पर पता नहीं हमारा समाज पुराने रिति-रिवाजों को कब छोड़ेगा ???
शुभि बोलती ” शेखर मुझे इतना ना चाहो शेखर” डर लगता है मुझे इस दुनिया से । शेखर दिलों जान से शुभि के साथ ही जिंदगी बिताना चाहता है……. सिर्फ अपनी मां का दिल दुखाना नहीं चाहता है……पर उसके नाना-नानी शुभि से मिल भी चुके हैं और इस शादी के लिए भी तैयार हैं ।
शुभि के भैय्या को उसकी भाभी इस शादी के लिए मना लेती है । माता-पिता को भी लगता है” उनकी बेटी किसी के सहारे ज़िंदगी बसर करेगी” ।
शेखर मेरा भी अच्छा मित्र है मां पूर्वी बोली, ” उसने मेरे पास भी अपने विचारों को व्यक्त किया” मैंने भी साफ-साफ कहा, एक बार सोच लो शेखर , तुम्हारी पहली शादी है…… और तुम्हारी मां के भी तो……..अरमान हैं न शेखर……. शुभि की जो भी हो………….. हैं तो दूसरी शादी …….. सोच लो…….. प्यार करना और शादी के बाद पूरी जिंदगी एक-साथ बिताना है ।
पूर्वी की कहानी सुनते-सुनते मां की आंखों से भी अश्रु बहने लगे । रोना मत मां……. मुझे पता है कि तुम भी इस स्थिति से गुजर चुकी हो ।
जानती हो, “आज क्या हुआ मां, शेखर को जरूरी काम से अचानक ही चेन्नई जाना पड़ा” तो शुभि का मन रोज जैसा नहीं था, मुझसे बोली कि मैं भी बहुत प्यार करने लगी हूं शेखर से, ” और प्यार करना गुनाह तो नहीं है न ” ?? बस पूर्वी डर लगता है मुझे इस समाज से, शेखर की मां से ……. पुरानी बनायी हुई कुरितियों से ……. इनको खत्म करना, कैसे बस….. सिसकते हुए शुभि रोने लगी ।
इतने में शुभि मां मेरे साथ बातचीत कर ही रही थी, कि शेखर की माताजी कंपनी के कार्य जांचने के लिए आ गयी । बस फिर क्या, थोड़ी देर बाद शुभि को केबिन में बुलाया और पूछने लगीं ? शायद उन्हें शेखर के नाना-नानी से इनके प्रेम प्रसंग और शादी के बारे में पता चल गया था । कुछ भी पूछने से पहले ही डांटना शुरू कर दिया…… तुम अपनी ओकाद में रहो……. तुम कैसे मेरे बेटे से प्यार कर सकती हो…… मेरे बेटे पर डोरे डालो मत सम़झी……….. उनको किसी ने गलत फीडबेक दिया था कि शेखर का काम में बिल्कुल ध्यान नहीं है और इस शुभि के साथ ही जाता है……. । बस मौका मिला तो वह आ गईं । पर इस तरह का व्यवहार कचोट रहा है मां, पूर्वी की मां बोली ” ऐसे लोगों को सोच बदलने की जरूरत है बेटी ” । फिर शुभि ……. निस्तब्ध खड़ी….. शुभि ……. पूर्वी ने कहा मैं ही घर छोड़ने गई मां, तभी देर हुई मां…….. ऊपर से यह ट्राफिक…….. । मां ने कहा बहुत रात हो गई है बेटी…. चलो हमें अभी सोना चाहिए ताकि सुबह हम कोई नया रास्ता निकाल सकते हैं ।
दूसरे दिन सुबह……… पूर्वी की मां तैयार होकर…. चलो पूर्वी, आज मैं भी चलूंगी तुम्हारे साथ…….. दोनों मां-बेटी जैसे ही कंपनी पहुंचती हैं………. तो ये क्या ? शेखर के नाना- नानी , उसकी मां के साथ शुभि से बातचीत कर रहे हैं । पूर्वी अपनी मां के साथ….. एकदम शांत सी ……. नाना-नानी, जानकी देवी से कह रहे हैं कि बच्चों की खुशी में ही हमारी खुशी है…….. इसमें शुभिका का क्या कसूर………. तुम्हें अपने शेखर से तो पूछना था न…… किसी भी नतीजे पर पहुंचने के पूर्व जान तो लेती ।
इतने में शेखर भी आ जाता है…….. पूर्वी…… शुभि ……. क्या हुआ……. आंटी जी……. नाना-नानी……… मम्मी जी …….. कोई बताएगा भी……… जानकी देवी ” शेखर सिर्फ मैं तेरे भले का ही सोच रही बेटे” मैंने केवल शुभि को कहा कल …… तुझे जिताने पैसे चाहिए ले ले , पर मेरे बेटे का पिछा छोड़ दें…… वो तो शांत खड़ी हो……. निःशब्द परिभाषा सी अवाक होकर चली गई……..ये दुनिया जीने नहीं देती बेटा……… सामाजिक कुरीतियां बदलना बहुत कठिन है न ?????
शेखर शुभिका का हाथ अपने हाथों में थामें ……….. नहीं मां ये समाज……. यह कुरितियां ……. यह रूढ़िवादिताओं के चलते हमारे प्यार का क्या होगा??? मां मैं नवयुवक हूं और मेरे साथी मेरे साथ हैं , मुझे एक नई शुरुआत करने दो मां………। कोर्ट ने भी अनुमति दे दी है मां ………… नाना-नानी एकदम शांत होकर बेटी हमने पहले ही कहा था, तुझे ……… चलो हम सभी इस प्यार को बरकरार रखते हुए शेखर और शुभि को विवाह-बंधन में बांधकर एक नयी शुरूआत करते हैं ।
शेखर अपनी प्यारी शुभि को प्यार और स्नेह से अपनी बांहों में भरते हुए ..…………पर्याय का इजहार करता है………. शुभि के खुशी के आंसु छलक रहे हैं और शुभि शेखर को प्यार भरी नजरों से निहारते हुए ………..।
आरती अयाचित
(स्वरचित कहानी)
भोपाल