प्यार कर रहा हूँ . . . .
प्यार कर रहा हूँ . . . .
रोज की तरह आज भी भोर ने
एक नये जोश के साथ धरती पर
अपने पाँव पसारे
और चिडियों की चहचहाट ने
वातावरण को अपनी मधुर ध्वनी से
अलंकृत कर दिया
साइकिल की घंटी बजता दूधवाला
घर घर दूध की आवाज देने लगा
और मैं
अपने बदन पर चंद पत्तों के साथ
जमीन पर तटस्थ
मूक दर्शक की तरह खडा
वर्षों से यह सब देख रहा हूँ
पहले तो
राहगीर भी मेरी छाया में
बैठ कर विश्राम किया करते थे
कभी कोई वृद्ध
असली सहारों से तिरिस्कृत
लकडी के नकली सहारे
जो असली सहारे से
ज्यादा वफादार थी
चहरे पर जिंदगी के सफर
की खिची आडी टेडी
झुर्रियों की सौगात के साथ
मेरे तने से पीठ लगा कर
अपने बीते लम्हों को
आंखें बंद कर याद करता
और उसकी आँखों से
गंगा से पवित्र
आँसू की जलधार
चहरे पर बनी
झुर्रियों की घाटियों से
गुजरती उसकी पुरानी सी
कमीज में खो जाती
और वो अपने बोझ को उठा कर
आगे चल पड़ता
हर जानवर के लिए
मेरी छाया धूप में
अमृत समान थी
पर धीरे धीरे
समय का चक्र
अपनी क्रूर छैनी से
मेरी उम्र की परतों पर
अपनी नक्काशी करने लगा
आने को तो पंछी
आज भी आते हैं
अपनी चहचहाट के बाद
लेकिन जल्दी ही चले जाते हैं
शायद मुझमें अब उनको
आश्रय देने के लिए
घनी पतियों का अभाव है
नग्न होती मेरी टहनियां
राहगीरों को भी
धूप से बचाने में सक्षम
नहीं हैं
जानवरों ने भी नये
आश्रय ढूँढ लिए हैं
अब भोर और सांझ
मेरे लिए बेमतलब है
पर
मेरी जर्जर होती बाहें
आज भी हर किसी का
दुःख अपने में समेटने को
आतुर हैं
पर कुछ दिनों से मैं
डरने लगा हूँ
क्योंकि
कुछ दिनों से
मेरे अंदर की ममता से बेखबर
मेरी ही छाँव में पनाह लेने वाले
हाथों में कुल्हाडी लिए
मुझे देखकर
मेरे जिस्म का मोल भाव
करते नजर आ रहे हैं
और मैं
बेबस, असहाय, लाचार
सडक के किनारे
अपनी चंद पतियों के साथ
उनके प्रहार का
इंतज़ार कर रहा हूँ
अंजाम जानते हुए भी
दोस्तों
अपने ही कातिलों से
फिर भी
मैं
प्यार कर रहा हूँ,प्यार कर रहा हूँ,
सुशील सरना/24-11-24