प्यारे मन
प्यारे मन
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क्यों भटकते हो मन
क्यों बेचैन हो जाते हो
किसे खोजते हो
किसे ढूँढते हो..
कौन था तेरा
जो खो गया
यह संसार एक
ऐसी दुनिया है
जहाँ तुम्हारा कोई नही
पर तुम सबको अपना समझते हो
भूल कर जाते हो
हर बार
जब भी किसी से मिलते हो
उसको अपना मान लेते हो
हाँ, हैं लोग अपने
इस जग में
उस अपनापन की भी एक सीमा है
स्वार्थ की उस परिधि के बाहर
कोई नहीं आ सकता
अपने से अपने रिश्ते भी नहीं
जब स्वार्थ की परिधि से उनके
बाहर आने की अपेक्षा करने लगते हैं हम
दरकने लगते हैं वहीं से
प्रेम के सभी धागे,
रिश्तों में जकड़े लाचार रिश्ते
भाग जाते हैं सभी
काफी दूर
शायद रात के आकाश में
चाँद, तारों के पास
नहीं लौटने के शपथ के साथ
फिर भटकते क्यों हो तुम
बेचैन क्यों हो जाते हो
उनके लिए
मेरे प्यारे मन!
जो तुम्हारे थे ही नहीं
कभी भी।
-अनिल कुमार मिश्र,राँची,झारखंड।